Tuesday, October 27, 2009
ताना न मारो मोहे तीर लागे ....
आज और इस क्षण मन कर रहा है कि एक पसंदीदा गीत को साझा किया जाय। कुछ सुना जाय , कुछ बुना जाय !
अब कि ऐसे समय में जब चारो तरफ लगभग भुस - सा भरा हुआ है और जिसे देखिए वही अपने ही भीतर के हाहाकार से हलकान है और दोष बाहर के दबावों , प्रलोभनों , उठापटक को दिए जा रहा है तब अपने मन की कुछ कर लेना , अपने वास्ते एकांत के दो पल तलाश लेना कितना -कितना कठिन हो गया है ! औरों की बात क्या करूँ ? मैं किसी के मन के भीतर तो पैठा नहीं हूँ ! अपने तईं लगता है कि मन के भीतर पैठने के वास्ते संगीत और शायरी से बढ़िया चीज कोई और नहीं मिली.
कहना बहुत कुछ है लेकिन सुनना और भी जरूरी है सबसे जरूरी. तो आइए थोड़ी देर के लिए तमाम चीजों को एक तरफ कर बैठें , तसव्वुरे जानां करे और कुछ सुनें.. और मन करे , फुरसत हो तो कुछ बुनें
.. तो आइए , आज सुनते हैं ज़िला खान का गाया यह गीत - ताना न मारो .. उम्मीद है कि पसंद आएगा..
करुणामय को भाता है
तम के परदों में आना
हे नभ की दीपावलियों!
तुम पल भर को बुझ जाना!
( चित्र परिचय : महादेवी वर्मा की पेंटिंग )
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7 comments:
हाय इस गीत और सारंगी की तानों पे कुरबान। बीच में बांसुरी की धुन और परम आनन्द...
आपने हमारी सुबह गुलज़ार कर दी।
बहुत आभार,
’ताना ना मारो मोहे तीर लागे जी,ताना ना मारो शमशीर लागे जी ....’ यह गीत ज़िला के पिता और विख्यात सितारवादक उस्ताद विलायत खान ने एक पागल/विक्षिप्त महिला से सुना और पाया था जो बेध्यानी में इसे बार-बार इसे दोहराती थी .
ओह…क्या गीत है और क्या अद्भुत गायकी!!
"mori ye haar mohe jeet laage re".... vaah..kya baat hai ..zila khaan hamesha pasand aatin hain...
महादेवी वर्मा की पेंटिंग ...pehli baar dekhi..
kano mein shahad ghol di aapne bahut-bahut dhanyavad.
इतने सारे ताने मारने के बाद आपने एक बेहतरीन आवाज में अच्छा गीत भी मारा। वाह !
महादेवी वर्मा की कविता की पंक्तियाँ , उनकी पेंटिंग देखकर ,जिला ख़ान का खूबसूरत गायन सुनकर आनंद आ गया .
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