Saturday, March 6, 2010

लेकिन नींद के इस तरफ़ मोमबत्तियां सुबकती हैं

(यह पोस्ट पूरी तरह कबाड़ी सुशोभित सक्तावत की है. मैं इसे केवल लगा भर रहा हूं.)




तुम एक उचटी हुई नींद थे, आमेदियोस...
(मोत्‍सार्ट के लिए)

शराब की लुढ़कती हुई बोतलों और
आंसुओं की भाप के अंतिम छोर पर
ग्रेट मास इन सी मायनर 'कायरी'
तुम आंकते हो गिरजे के अवसन्‍न अंतराल में
एक समानांतर सतह
और छोड़ देते हो
बाक़ी चीज़ों को
असमाप्‍त
तुम्‍हें रचना था ख़ुद के लिए एक विलाप गीत
जबकि हमारे लिए तुमने
वायलिनों की दिलक़श
रवानियां ही रख छोड़ीं
एक अलमस्‍त लय में गूंधकर
रवा-रवा कर दिया
हमारी नीरव रातों को

स्‍केल बदलता है
क्षितिज पर एक और क्षितिज
पियानो कैन्‍चर्टो नं.15 के.450
तुम अभी रास्‍ते में हो, घर नहीं पहुंचे
विएना की अवास्‍तविक-सी सड़कों को
रचते किसी तराने की तरह
पियानो का पहला नोट हवा में टिमकता है
किसी सितारे की तरह जिसे सहलाती हैं
तुम्‍हारी भूखी अंगुलियां
जिनके ऐन नीचे करवट बदलती है एक नदी
और एक फ़ाख्‍ता गिरता है
अपने कटे पंखों के साथ
सिंफ़नियों के समवेत में
रात है, तुम्‍हारे बेतरतीब काग़ज़-पत्‍तरों पर
फैल रही है स्‍याही
बिलियर्ड्स टेबल पर ऑपरा लिखते तुम
फ़ि‍गरो का ब्‍याह
चौथा अंक, कोरस और टेनॅर्स,
आवाज़ों और हरकतों की गेंदें लुढ़कती हैं
शराब का गिलास ख़ाली होता ख़ुद पर
छनती हुई सफ़ेद रोशनियों के पसेमंज़र
पिता की नज़रों से छुपाकर
एक और सीक्‍वेंस लिख डालते हो तुम
कमरे के लहराते परदों के सिवा
किसी को कानोंकान ख़बर नहीं होती

लेकिन नींद के इस तरफ़
मोमबत्तियां सुबकती हैं
वो कौन-सी अंतहीन आग थी, आमेदियोस
जिसके बाबत बतिया रहे थे सालियारी से
अपनी डूबती नब्‍ज़ों को ऑर्गेन की उदासी में घोलते
रेक्‍वेइयम मास इन डी मायनर... कंफ़ूतातिस...
जिसे तुमने अपने भीतर जगह दी
और ख़ुद को होने दिया ख़ाक़
तुमने सरेआम ख़ुद को पिता का हत्‍यारा पुकारा
और अपने हत्‍यारे को मोहलत भी न दी बच निकलने की
मौत के मचान पर माफ़ी मांगकर उससे
और अब तुम्‍हारे पास इतना भी वक्‍़त नहीं
कि पूरा कर सको अपना मृत्‍युगीत
एक और सैकड़ा ड्यूकेट्स के लिए
तुम रचते हो लेक्रिमोसा
क़ब्रों पर बिखरता है सफ़ेद कोहरा
बारिशें होती हैं बेसब्र
तुम आंखें मूंदते हो
और एक धुंए की लक़ीर लपकती है
जिसे तुमने टर्किश नाच की लयबद्ध देहों की
धोखादेह लज्‍ज़त में कहीं
छुपा दिया था

नींद के इस तरफ़, आमेदियोस
उचटी हुई नींद के साथ
जाग जाना वक्‍त से ख़ूब पहले
किसी जंगल में ज़ब्‍त हो जाने जैसा होता है
और ऐसे मौकों पर ख़ूब ताक़तवर साबित होते हो तुम
तुम दफ़्न नहीं हुए
बस, जाग गए थे अपनी मौत में
हमारी तमाम पराजयों के साथ
बैसून और बैसेट हॉर्न्‍स की सुस्तियों के ऐन ऊपर
कांसे की घंटियों-सा टंगा क्‍लैरिनेट का वो
अकेला और शानदार स्‍वर
तुम हो,
जिस तक सुबह की नंगी पीठ
और जुआघर की ख़ाली मेज़ें
और जादुई बांसुरियां
और बर्मी के हार्प की
मद्धम गुनगुनाहटें
पहुंचने नहीं पातीं
मोमबत्तियों के साथ हम मूंदते हैं आंखें
तुम एक उचटी हुई नींद थे, आमेदियोस
जिसे हमने किसी अनबुझ आग की परछाइयों में बिलाते देखा था
सदी के पिछले पहर.

(अब सुनिये मोत्सार्ट की एक रचना - सोनाटा इन ए माइनर: आन्दान्ते कान्ताबिले)

Mozart - Mozart: Sonata in A minor K310/300d, II. Andante Cantabile .mp3
Found at bee mp3 search engine

6 comments:

Ashok Pande said...

Don't you worry about no one commenting Sushobhit. Its just like that. Its just like this bloody that.


Why dont you write a post about Hussain! MF I mean. That should open the floodgates.

abcd said...

मुझ जैसे लोगो के लीये आनन्दित कर देने वाली जान्कारी/
मुझे जित्ना समझ आया,मोज़्ज़ार्ट की जीवनी है,ये पुरी कविता,और अब मोज़्ज़र्ट की पुरी कहानी तक पहुच्ने का पुरा नक्शा देती है /

जादा नही जान्ता मोज़्ज़र्ट के बारे मे,सालो पेह्ले ,planet M मे बिना किसी जान्कारी के इन्की केसेट ढुन्ड्ते-२ थक गये तो पुछा-"वो जो धीरे-२ सन्गीत बज्ता है,बडी होटेल या प्लेन मे,वो कहा है ? "

हम जैसे अछ्छी जान्कारी,सन्गीत और साहित्य के आखेटियो के लिये शान्दार खुराक /

जादा तो नही सुना ऐसा सन्गीत लेकिन एक द्रिश्य याद आ गया--चर्चगेट मुम्बई पर रेशम भवन मे नीचे एक चाय घर है,जहा पुरी दुनिया मे मिल्ने वाली सब्से बेह्त्रीन चाय पी जा सक्ती है,दुनिया के सारे हिस्सो की चाय,वहा piyano पर दिन के एक वक्त एक blind gentleman..इसी से मिल्ता जुल्ता सन्गीत बजाते है

और आप .................खुब लिख्न्ना भाई,और लिख्नना,लिख्ते रेहना..................

मुनीश ( munish ) said...

....Or even MJ for that matter. MJ, MF, Mozart...all 'M's in one place ! Even though i don't follow this kind of music , but yes it's got the feel ...thnx.

शरद कोकास said...

अच्छी लगी यह कविता ।
पढ़ने वाले पढ़ रहे है.. ।
जो मोज़ार्ट को जानते हैं वे ही /भी ?

Kanchan Lata Jaiswal said...

NICE POEM.

Kanchan Lata Jaiswal said...

NICE POEM.