Sunday, August 28, 2011

एक युवा कवि को पत्र - 4 - रेनर मारिया रिल्के

(पत्र १, पत्र २, पत्र ३ से आगे)



वोर्पस्वीड, ब्रेमेन के नज़दीक
१६ जुलाई, १९०३

कोई दस दिन पहले बेहद थका हुआ और बीमार मैं पेरिस छोड़कर इस महान उत्तरी मैदान में आ गया हूं जिसकी विस्तीर्णता और ख़ामोशी ने मुझे दोबारा से ठीक कर देना चाहिए. लेकिन मैं यहां लम्बी बरसातों के वक़्त आया; ये पहला दिन है जब इस बेचैन उड़ाए जाते हुए लैन्डस्केप को थोड़ी राहत मिली है, और इस क्षण का फ़ायदा उठाते हुए मैं आपको सलाम कर रहा हूं प्रिय मान्यवर.

प्रिय जनाब काप्पूस: मैंने एक लम्बे समय से आपके लिखे एक पत्र को अनुत्तरित छोड़ा हुआ है; ऐसा नहीं कि मैं इस बाबत भूल गया होऊं - इसके उलट यह पत्र उस तरह का है जिसे आप दूसरे पत्रों के साथ देखने पर दोबारा से पढ़ते हैं, और मैं इसमें आपको इस तरह पहचानता हूं जैसे कि आप बेहद नज़दीक कहीं हों. यह आपका दो मई का लिखा ख़त है और मैं निश्चित हूं कि आपको इसकी याद है. इन विराट दूरियों की महान शान्ति में इसे पढ़ते हुए, जीवन को लेकर आपकी सुन्दर चिन्ता ने मुझे स्पर्श किया है, उस से कहीं ज़्यादा जब मैं पेरिस में था, जहां हरेक चीज़ अलग तरह से गूंजती है और धुंधली पड़ जाती है क्योंकि वहां शोर की अधिकता वस्तुओं को थर्राहट से भर देती है. यहां, जहां मैं एक विपुल लैन्डस्केप से घिरा हुआ हूं, जिसे समुद्र से आने पर हवाएं अपने साथ उड़ा ले जाती हैं, यहां मुझे महसूस होता है कि कहीं भी कोई नहीं है जो आपके लिए उन भावनाओं और प्रश्नों का उत्तर दे सके, जिनका अपनी गहराइयों में अपना जीवन है; क्योंकि सबसे सुस्पष्ट लोग भी सहायता करने में अक्षम होते हैं, चूंकि शब्द जिस तरफ़ इशारा कर रहे हैं वह इस कदर नाज़ुक है, तकरीबन अकथनीय. लेकिन तब भी मैं समझता हूं कि आपको समाधान के बग़ैर ही नहीं रहना पड़ेगा अगर आप उन चीज़ों पर यक़ीन करते हैं जिन पर फ़िलहाल मेरी निगाहें ठहरी हुई हैं. अगर आप कुदरत पर ऐतबार करते हैं, उस पर ऐतबार करते हैं जो कुदरत के भीतर साधारण है, उन छोटी चीज़ों पर जिन्हें बमुश्किल कोई देखता है और जो अचानक विशाल और अगाध बन सकती हैं; अगर आप के भीतर उस के लिए प्रेम है जो विनम्र है और आप साधारण सी कोशिश कर सकें उसकी तरह जो सिर्फ़ सेवा करता है, उसका विश्वास जीत सकें जो बेचारा लगता है: तब आप के लिए सब कुछ आसान हो जाएगा, ज़्यादा संगत और एक तरह से ज़्यादा स्वीकार्य समाधान, सम्भवतः आपके चेतन मस्तिष्क में नहीं, जो आश्चर्यचकित होकर पीछे ठहरा रहता है, बल्कि आपकी अन्तरतम चेतना, जागृति और ज्ञान के भीतर. आप इतने युवा हैं, सारी शुरुआत से पहले इतना सारा, और प्रिय मान्यवर मैं आपसे माफ़ी चाहते हुए जहां तक मुझसे सम्भव होगा आपके हृदय के भीतर जो कुछ भी अनिर्णीत है उसके साथ धीरज धरूंगा और आपके प्रश्नों को प्रेम करने की कोशिश करूंगा जैसे कि वे बन्द कमरे हों या किसी बेहद विदेशी भाषा में लिखी गई किताबें. उत्तरों की खोज मत कीजिए, वे आपको अभी नहीं दिए जा सकते क्योंकि आप उनके साथ रह नहीं सकेंगे. और मसला है हरेक चीज़ को जीने का. अपने प्रश्नों को अभी जीइए. सम्भवतः तब, भविष्य में, हौले-हौले, किसी सुदूर दिन, बिना जाने हुए आप उत्तर तक ले जाने वाले रास्ते को जिएंगे. शायद आपके भीतर रचने और आकार बना सकने की सम्भावना है, जीने के एक अतिविशेष भाग्यवान और शुद्ध तरीक़े के तौर पर; अपने को उसके लिए प्रशिक्षित कीजिए लेकिन जो कुछ सामने पड़ता उसे एक महान विश्वास के साथ थामिए, और जब तक वह आपकी इच्छाशक्ति से बाहर नहीं आता, आपके अन्तरतम स्व की किसी ज़रूरत से, तब तक हरेक चीज़ से भिड़िए और किसी भी चीज़ से नफ़रत मत कीजिए. सैक्स मुश्किल होता है, हां. लेकिन जिन कामों का ज़िम्मा हमें सौंपा गया है वे मुश्किल होते हैं; तक़रीबन हरेक संजीदा चीज़ मुश्किल होती है; और हरेक चीज़ संजीदा होती है. अगर आप बस इस बात को समझ जाएं और अपने आप से, अपनी प्रकृति और प्रतिभा की मदद से, अपने अनुभव, बचपन और ताक़त की मदद से यह उपाय कर सकें कि सैक्स को लेकर आपके पास एक नितान्त वैयक्तिक सम्बन्ध हो (वह नहीं जो परम्पराओं से प्रभावित होता है), तब आपको अपने आप को खोने अपनी सबसे बेशकीमती चीज़ के अयोग्य पाने का भय नहीं रहेगा.

शारीरिक आनन्द एक संवेदनात्मक अनुभव होता है, निखालिस देखने और महसूस करने से ज़रा भी अलग नहीं, जिससे एक सुन्दर फूल आपकी जीभ को भर देता है; हमें दिया गया यह एक महान और अनन्त ज्ञान है, संसार का एक ज्ञान, सारे ज्ञान का भरापूरापन और उसका वैभव. और ऐसा नहीं कि इस बात को हमारा अस्वीकार करना ग़लत है; ग़लत यह है कि ज़्यादातर लोग इस ज्ञान का दुरुपयोग करते हैं और उसे यूं ही ख़र्च कर देते हैं और अपने जीवन के थकी हुई जगहों में उसका इस्तेमाल किसी उत्तेजक की तरह मनबहलाव के लिए करते हैं बजाए अपने महानतम क्षणों के लिए अपने आप को इकठ्ठा करने के. लोगों ने तो खाने को भी कुछ और बना दिया है: एक तरफ़ वह आवश्यकता है, दूसरी तरफ़ अति; लोगों ने इस आवश्यकता की स्पष्टता को गन्दला कर दिया है, और तमाम गूढ़ और साधारण ज़रूरतें, जिनमें जीवन अपने को नया बनाता है, वे भी उतनी ही मटमैली हो गई हैं. लेकिन व्यक्ति उन्हें साफ़ कर सकता है और सफ़ाई के साथ उन्हें जी सकता है (यहां एकाकी व्यक्ति की बात है न कि किसी पर आश्रित की). वह याद कर सकता है कि पशुओं और पौधों की सारी सुन्दरता, प्रेम और करुणा की स्थाई आकृति होती है, और वह पशु को देख सकता है, जैसे वह ख़ुशी-ख़ुशी और धैर्यपूर्वक पौधों को जुड़ते, गुणित होते और बढ़ते देखता है और ऐसा किसी शारीरिक आनन्द के लिए नहीं, किसी शारीरिक पीड़ा के लिए नहीं बल्कि उन आवश्यकताओं के समक्ष झुकते हुए जो आनन्द और पीड़ा से महत्तर होती हैं और इच्छाशक्ति से अधिक ताकतवर और पायेदार. बजाए इसे हल्के में लेने के अगर मानवजाति इतना भर कर पाती कि इस रहस्य को अधिक विनम्रता के साथ ग्रहण करती जिस से संसार अटा पड़ा है, जो उसकी क्षुद्रतम वस्तु में भी है, अगर वह इसे ढो पाती, दृढ़तापूर्वक इसका सामना कर पाती, महसूस कर पाती कि यह किस कदर भारी है. अगर वह अपने उस उपजाऊपन की रक्षा करने के लिए अधिक नम्र होती जो कि मूलतः एक ही है, चाहे वह मानसिक रूप से परिलक्षित हो या शारीरिक; क्योंकि मानसिक रचना भी शरीर से ही उपजती है और उसकी प्रकृति वैसी ही होती है अलबत्ता वह शारीरिक आनन्द का एक अधिक सौम्य, अधिक भावपूर्ण और अधिक अनन्त दोहराव होता है. "एक सर्जक बनने का, जन्म और आकार देने का विचार" संसार में उस की सतत महान सुनिश्चितता और अभिव्यक्ति के बग़ैर कुछ नहीं है, वस्तुओं और पशुओं में दिखने वाले हज़ार-तहों वाले स्वीकार के बग़ैर कुछ नहीं है - और इस से हमें मिलने वाला आनन्द अवर्णनीय तरीके से सुन्दर और भरपूर महज़ इसलिए होता है कि वह लाखों-लाख के जन्म ले चुकने की उत्तराधिकार में मिली स्मृतियों से ठसाठस होता है. एक रचनात्मक क्षण में प्रेम की एक हज़ार विस्मृत रातें अपनी शान और गरिमा के साथ पुनर्जीवित हो जाती हैं. और वे जो रातों को इकठ्ठा हो कर एक डोलते हुए आनन्द में गुंथे होते हैं दर असल एक महान कार्य कर रहे होते हैं और भाविष्य के किसी कवि के गीत के वास्ते मिठास, गहराई और ताक़त इकठ्ठा कर रहे होते हैं, जो अकथनीय आनन्दातिरेकों को कहने के लिए प्रकट होगा. और वे भविष्य को पुकारते हैं; और अगर उन्होंने कोई ग़लती की भी है और वे अन्धे होकर एक दूसरे का आलिंगन कर रहे होते हैं, भविष्य तो तब भी आएगा, एक नया मानव प्रकट जीव होगा और जो दुर्घटना यहां घट चुकी दिखती है उसकी बुनियाद पर वह नियम जागृत होता है जिसकी मदद से एक मज़बूत, दृढ़निश्चयी बीज अपना रास्ता स्पष्टतः उसकी तरफ़ आगे बढ़ती अण्ड-कोशिका तक बनाता है. सतहों को लेकर सशंकित मत होइए; गहराइयों में हरेक चीज़ नियम बन जाती है. और वे जो रहस्य को झूठे और ग़लत तरीक़े से जीते हैं (और ऐसे ढेर सारे हैं) वे उसे अपने वास्ते गंवा देते हैं और उसे बिना जाने किसी बन्द चिठ्ठी की तरह आगे जाने देते हैं. और इस बात से परेशान मत होइए कि कितने सारे नाम हैं और जीवन किस कदर जटिल लगता है. सम्भवतः एक सामुदायिक उत्कंठा की आकृति में उन सब के ऊपर एक महान मातृत्व होता है. किसी लड़की का सौन्दर्य, वह व्यक्ति जिसने (जैसे कि आप इतनी खूबसूरती से कहते हैं) "अभी तक कोई उपलब्धि हासिल नहीं की है" एक मातृत्व है जिसे अपने बारे में एक पूर्वाभास है और जो तैयार होना शुरू कर देता है, चिन्तित होता है और इच्छाएं करता है. और माता का सौन्दर्य वह मातृत्व है जो सेवा करता है, और पुरानी स्त्री के भीतर महान स्मृतियां होती हैं. और मुझे ऐसा लगता है कि पुरुष के भीतर भी शारीरिक और मानसिक मातृत्व होता है; उसका जन्म देना जन्म लेना भी है, और यह जन्म लेना है जब वह अपने अन्तरतम भरपूरपन से रचता है. और शायद स्त्री-पुरुष उससे ज़्यादा समान होते हैं जितना लोग सोचते हैं, और संसार के महान नवीनीकरण में सम्भवतः एक अद्भुत घटना घटेगी: कि स्त्री और पुरुष, सभी ग़लतफ़हमियों और द्वेष से मुक्त होकर एक दूसरे को अपना विलोम नहीं बल्कि भाई-बहन जैसा समझेंगे, और मानवों की तरह मिल जाएंगे, ताकि अपने ऊपर थोपे गए उस भारी सैक्स को सादगी और ईमानदारी से साझा कर सकें.

लेकिन हरेक चीज़ जो किसी दिन कई लोगों के लिए सम्भव हो, एकाकी आदमी उसे अभी तैयार और निर्मित कर सकता है अपने हाथों से, जो कम ग़लतियां करते हैं. इसलिए प्रिय मान्यवर, अपने एकाकीपन से प्रेम कीजिए और उस दुःख के साथ गाने की कोशिश कीजिए जो इसकी वजह से आप को पहुंचता है. आप लिखते हैं कि आप उन लोगों के लिए बहुत दूर हैं जो आपके नज़दीक हैं, और यह दिखाता है कि आपके आसपास का स्थान विशाल होता जा रहा है. और अगर आपके नज़दीक की चीज़ें सुदूर हैं तो आपकी विशालता अभी से सितारों के बीच है और बहुत महान है; अपने विकास को लेकर प्रसन्न होइए, जिसमें निस्संदेह आप किसी को भी अपने साथ नहीं ले जा सकते, और जो पीछे रह गए हैं उनके साथ उदार होइए; उनके सामने निडर और शान्त रहिए और उन्हें अपनी शंकाओं से यातना मत दीजिए, न ही उन्हें अपने यक़ीन और आनन्द से डराइए, वे उसे समझ ही नहीं सकेंगे. उनके साथ जो भी सादा और सच्ची भावनाएं आप साझा कर सकते हैं उन्हें खोजिए, जिन्होंने ज़रूरी नहीं कि आपके लगातार बदलते जाने के साथ बदलना ही हो; और जब आप उनसे मिलें जीवन को एक ऐसे आकार में प्रेम कीजिए जो अभी आपका नहीं है और जो बूढ़े हो रए हैं उनके साथ दयालु बनिए, जिन्हें उस अकेलेपन से डर लगता है जिस पर आप यक़ीन करते हैं. उस नाटक के लिए सामग्री मुहैया कराने से बचिए, जो मां-बाप और बच्चों के दराम्यान सदैव खिंचा रहता है; उसकी वजह से बच्चों की ज़्यादातर ताक़त ख़र्च हो जाती है और बड़ों का प्रेम बरबाद जाता है, जो न समझने के बावजूद काम करता है और ऊष्ण रखता है. उनसे किसी भी तरह की सलाह मत मांगिए और अपने समझे जाने की उम्मीद भी मत रखिए; लेकिन एक ऐसे प्रेम में विश्वास रखिए जो आपके लिए किसी उत्तराधिकार की तरह इकठ्ठा किया जा रहा है और यक़ीन कीजिए कि इस प्रेम के भीतर इतनी शक्ति और आशीष है कि आप इस से बाहर निकले बिना भी जितनी दूर तक जाना चाहें जा सकते हैं.

यह अच्छा है कि जल्द ही आप एक ऐसे पेशे में होंगे जो आपको स्वतन्त्र बनाएगा और आप हर तरह से अपने स्वामी होंगे. धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कीजिए और देखिए कि क्या इस पेशे की वजह से आपका आन्तरिक जीवन सीमित तो नहीं हो रहा है. ख़ुद मुझे यह बेहद मुश्किल और सख़्त लगता है, चूंकि इस पर विपुल परम्पराएं लदी हुई हैं और इसके कर्तव्यों के व्यक्तिगत स्पष्टीकरण के लिए बहुत कम गुंजाइश बचती है. लेकिन आपका एकान्त आपके लिए शक्ति और घर का काम करेगा, चाहे आप बेहद अपरिचित परिस्थितियों से दो-चार हों, और उस से आप अपने सारे रास्ते खोज लेंगे. मेरी तमाम सदेच्छाएं आपका साथ देने को तत्पर हैं और मेरा विश्वास आपके साथ है.

आपका,

रेनर मारिया रिल्के

1 comment:

Pratibha Katiyar said...

kamaal hai! har baar kuch naya de jate hain...is post ko abhi kai baar padhna hoga