Tuesday, April 13, 2010

आई प्रवीर - द आदिवासी गॉड - ६

(पिछली किस्त से जारी)

... कुंवरसेन ने मुझे कांकेर के पूर्व महाराजा के आपराधिक क्रियाकलापों के सन्दर्भ में एक लघुपुस्तिका प्रसारित करने के लिए बाध्य कर दिया जिसका शीर्षक था - ज़ोर, ज़ुल्म और ज़बरदस्ती. दूसरे शब्दों में यह लघुपुस्तिका कांग्रेसी सरकार की आड़ में महाराजा कांकेर द्वारा भानुप्रतापपुर में किए गए आपराधिक कार्यकलापों का एक कच्चा चिठ्ठा लेखा-जोखा था किन्तु इसका एकदम प्रतिकूल परिणाम निकला. कुंवरसेन और देवेन्द्रनाथ को मज़बूत प्रान्तीय सरकार द्वारा स्थानान्तरित करवा दिया गया. सूर्यपाल तिवारी ने मेरे ही परिसर में आयोजित एक कांग्रेसी बैठक में मुझे ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया. मेरी निजी सम्पत्ति भी तब तक कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स के अधीन थि यद्यपि इससे विमुक्त कर दिए जाने के लिए प्रान्तीय सरकार द्वारा कई घोषणाएं की जा चुकी थीं. बस्तर के निवासियों के विकास और पुनरुत्थान के लिए मेरे द्वारा लाए गए प्रस्तावों को कभी भी गम्भीरता से नहीं लिया गया और कांग्रेस समिति द्वारा हमेशा इनकी खिल्ली उड़ाई . जब ये पेरिस्थ्तियां असहनीय हो गईं तब मैंने इसके विरोध में अपना अध्यक्ष पद त्याग दिया. मैं अनुभव करता था कि मैं अपने स्वयं के आर्थिक संसाधनों की मदद से बस्तर के आदिम समुदाय तथा अन्य निवासियों का अधिक हित कर सकता था बनिस्बत लोकधन का अपव्यय कर लोगों को धोखा देने के जैसा कि कांग्रेस के लोग किया करते थे. मेरे पद त्याग कर देने के कारण फिर से चुनाव कराना पड़ा और मेरे द्वारा रिक्त पद के लिए एक बिन्देशदत्त प्रत्याशी बना. इसी काल में नारायणपुर क्षेत्र के एक कांग्रेसी विधायक की मृत्यु हो जाने के कारण उस क्षेत्र के लिए एक उपचुनाव भी कराना पड़ा था. इस क्षेत्र के लोगों ने जो सदा से ही कांग्रेस से घृणा करते आए हैं इस बार भी वैसा ही किया. इस कांग्रेसी प्रशासन द्वारा उस क्षेत्र में जो अपराध किए गए थे उसका उल्लेख करना भी भयानक है. उन्हें सुनने मात्र से मनुष्य को रोमांच हो आता है. इस क्षेत्र में घटी इन घटनाओं का संकलन मेरी एक छोटी सी पुस्तिका "अन्तागढ़ का काला अपराध" में किया गया. इसका परिणाम यह हुआ कि इस उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी भारी मतों से पराजित हुई.इसी समय के आसपास तत्कालीन कलेक्टर मि. पवार ने प्रान्तीय सरकार को एक पत्र में इस क्षेत्र में मेरी उपस्थिति से जहां कांग्रेस के मतदाताओं के टूट जाने की आशंका का खतरा बताया था वहीं राजकीय गुप्तचर तन्त्र द्वारा इस छोटी सी पुस्तिका को दांत चबाने की टिप्पणी के साथ प्रान्तीय सरकार को भेजा गया. इस प्रकार का पत्र तथा अन्य विशेषकर इस प्रकार के ओकतान्त्रिक चुनावों के मामले में किसी सरकारी अधिकारी का हस्तक्षेप निस्संदेह वांछनीय नहीं है. किन्तु यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो गई थी कि कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों ने प्रशासनिक तन्त्र को को इस बुरी तरह अपने प्रभाव में जकड़ रखा था और बस्तर का आदिम समुदाय जो प्रायः निरक्षर है, को भी साहित्यिक सत्य प्रभाइत कर सकता है.

इस चुनाव का परिणाम घोषित होने के पहले ही मुझे प्रान्तीय सरकार के एक राजनैतिक सचिव का पत्र प्राप्त हुआ जिसमें आदिवासी सेवादल की अप्रजातान्त्रिक गतिविधियों के बाबत आपत्ति की गई थी. किन्तु मेरी राय में इस दल का कार्य पूर्ती तरह संवैधानिक तथा साधारण ही था. इसके बाद चुनावों में अपनी करारी हार के कारण प्रान्तीय सरकार चौकन्नी हो गई थी और बस्तर की सभी गतिविधियों को गम्भीरता से लेने लगी थी. वर्ष १९६० के आसपास प्रान्तीय सकार के राजनैतिक विभाग ने बस्तर के लोगों की सभी गतिविधियों को हतोत्त कर देने का एकातरफ़ा खेल शुरू कर दिया. ग्राम बस्तर के एक गन्दे तालाब की सफ़ाई अभियान पर इस आदिवासी सेवादल के स्वयंसेवकों पर जिसमें परिगणित समुदाय के भी लोग थे, सूर्यपाल तिवारी ने एक आपराधिक मामला उनके विरुद्ध चलाया जिसमें सरकार को भी एक पक्षकार बनाया गया था. यह मामला केवल तालाबों के आसपास के निवासियों के निस्तार विशेषकर सार्वजनिक निस्तार में बाधा पहुंचाने की बदनीयती से चलाया गया था. सरकारी तन्त्र द्वारा आदिम समुदाय के इस तरह के सार्वजनिक कार्यों को दण्डकारण्य परियोजना के लिए एकतरफ़ा आरक्षित कर आदिवासियों के अनन्त काल से चले आ रहे अधिकारों पर हस्तक्षेप किया गया था. यही नहीं कांग्रेस के ये ही बड़े पदाधिकारी आरक्षित वनों की लकड़ियों को काटने के लिए अनपढ़ आदिवासियों को उकसाते थे और दूसरे ही क्षण पीठ पीछे पुलिस में उनकी रिपोर्ट लिखवा देते थे. सूर्यपाल तिवारी ने एक सरकारी डाकबंगले का ताला तोड दिया था. इस बलात किए गए अपराध के लिए कलेक्टर ने उसके विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा ४०६ के तहत कार्रवाई करनी चाही पर अपने विशिष्ट सहयोगियों की मदद से सूर्यपाल तिवारी बच निकलने में कामयाब रहा. सूर्यपाल ने एक बार खाम सिरिसगुड़ा में एक शिक्षक की पत्नी के साथ बलात्कार करने की भी कोशिश की थी जो समय पर एक चतुर व्यक्ति के हस्तक्षेप के कारण टल गई थी.

(जारी)

1 comment:

Sanjeet Tripathi said...

ye kitab batati hai ki tab bhi kitni rajniti hui thi bastar me..
padh raha hu.