Monday, April 12, 2010

आई प्रवीर - द आदिवासी गॉड - ५

(पिछली किस्त से जारी)

सूर्यपाल ने हमें कुंओं तथा तालाबों के निर्माण कार्य से वंचित कर देने के सभी प्रयास किये जो आम आदमी के लिए खोदे जा रहे थे. एक संस्था आदिवासी सेवा दल के नाम से सार्वजनिक उपयोग के लिए कुंओं और तालाबों के निर्माण के लिए गट्ठित की गई थी किन्तु प्रशासन ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया और न दी इसकी तरफ़ कोई ध्यान दिया. सूर्यपाल को लोकधन को हड़प लेने में अधिक रुचि रखता था - उनके सिर सिर से टोपियां उठाकर उन्हें बेइज़्ज़त करने लगा. इस ज़िले की पानी की कमी ने भोपाल सरकार को झकझोर कर रख दिया था जो इस ज़िले से लगभग एक करोड़ रुपये राजस्व के रूप में वसूल लेती थी. जगदलपुर शहरी क्षेत्र में नलजल प्रदाय के लिए पानी की एक टंकी के निर्माण कार्य हेतु सरकार ने आठ लाख रुपये स्वीकृत किये थे. यहां गर्मी के दिनों में पानी के लिए लोगों को भारी संघर्ष करना पड़ता था किन्तु मि. पवार का - जो उस काल में बस्तर ज़िले का कलेक्टर था - का मत था कि राज्य सरकार ने इस मद में इतनी बड़ी रकम देकर बड़ी गलती की थी. उसके विचार से भाखड़ा बांध से लोहन्डीगुड़ा का प्रतावित बांध अधिक बड़ा होगा. इसी दौरान १९५७ में होने वाले आम चुनावों के कारण बस्तर की राजनीति में आमूल परिवर्तन होने लगा था. स्वाभाविक रूप से कांग्रेस पार्टी बस्तर में गहरी रुचि रखती थी. कुंवर सेन चाहता था कि बस्तर में कांग्रेस पार्टी महाराजा के साथ चुनावी गठबंधन कर ले. प्रान्तीय सरकार आदिवासियों को उनके महाराजा से अलग कर देने की कोशिश में बुरी तरह असफल हो गई थी जो प्रान्तीय सरकार का भारतीय राजनेताओं की नज़ार में अच्छा प्रदर्शन कतई नहीं था. इसके साथ ही विकसित होती आदिम तथा परिगणित समुदाय की एकता तथा सामूहिक संकल्पित कार्यशैली अब स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी थी. मध्यप्रदेश की कांग्रेसी सरकार की राजनीति को उस समय एक और करारी चोट पहुंची जब नई राजधानी भोपाल का शिलान्यास करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई. यद्यपि यह मृत्यु १९५७ के आम चुनावों में कांग्रेस का टिकट न मिलने के सदमे से हुई थी. साथ ही कांग्रेस के लोग अच्छे से जानते थे कि आने वाले आम चुनावों में सूरपाल के लिए समर्थक विधायक चुने जाने के लिए बस्तर में ज़रुरू मत जुटाना कठिन होगा. इस पर वे पूरी तरह आश्वस्त थे. इसके लिए अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का एक पर्यवेक्षक दिल्ली से कांकेर के महाराजा के साथ मेरे पास जगदलपुर भेजा गया था. कांकेर का महाराजा भविष्य के लिए बस्तर को अपना राजनैतिक साम्राज्य बना लेने का सपना देखने लगा था. केवल अपने राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए सूर्यपाल के स्थान पर मुझे कांग्रेस का टिकट दे दिया गया. वे चाहते थे कि मैं उनकी पार्टी की सदस्यता अब उनके दल में सम्मिलित हो जाऊं. पार्टी के इस निर्णय के साथ ही साथ उन्होंने वे सारे आरोप, जिसके तहत मुझे पागल घोषित करने के लिए आरोपित किया गया था, एकाएक बिना मेर द्वारा किसी तरह की याचना के समाप्त कर दिये गए. पुलिस प्रशासन भि इससे भारी प्रसन्न था क्योंकि कांग्रेस पार्टी को इसमें भारी सफलता मिल गई थी किन्तु जल्दी ही पुलिस प्रशासन और कांग्रेस पार्टी के लोग आपस में सिर टकराने लगे. इस सिरफुटव्वल का एकमात्र लक्ष्य था सत्ता पर नियन्त्रण पा लेना. इसके बाद कुंवरसेन ने अपना लक्ष्य कांग्रेस पार्टी को बना लिया. प्रान्तीय सरकार को भय लगने लगा था कि बस्तर क्षेत्र में उनकी पकड़ न केवल कमज़ोर पड़ती जा रही है, बल्कि उनकी प्रभुसत्ता भी समाप्त हो जाने के कगार पर है. सूर्यपाल के सभी आपराधिक कारनामे जिसमें उसके द्वारा उसके अपने गृहग्राम में एक सरकारी अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार का मामला भी सम्मिलित था, कुंवरसेन द्वारा संकल्पित कर मेरे समक्ष उसकी पुष्टि में मेरे हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत कर दिया गया. यह इसलिए किया गया क्योंकि मुझे उस समय बस्तर की कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बना दिया गया था. यह पद मुझे मेरे निर्वाचन के कारण प्राप्त हुआ था. इस प्रकार की कार्रवाईयां इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि बस्तर के सरकारी अधिकारी वर्ग अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए किसी भी निम्नस्तरीय कार्रवाई से नहीं चूकते थे. इस निम्न स्तरीय सरकार की पुलिस कार्रवाईयों के परिणामस्वरूप ही सूर्यपाल तिवारी के भाई को कुंवरसेन ने एक्दिन बखरसिंह के साथ गिरफ़्तार कर लिया, जो इन सरकारी अधिकारियों के लिए भारी प्रसन्नता का कारण था.

इसके बाद कुंवरसेन कांकेर के महाराजा के साथ भिड़ गया. यह भी उसकी कांग्रेसी घृणा की मुहिम का ही एक अंग था. रुग्ण महाराजा की एक मातृका बहन उसकी देखभाल तथा सेवा सुश्रूषा किया करती थी व एक कांग्रेसी राजघराने के एक प्रतिष्ठित परिवार से थी और इस महाराजा की कृपापात्र थी. कुंवरसेन तथा सरकारी अधिकारीगण एक निश्चित अवधि के अन्तराल में इनके सहभोजों में सम्मिलित हुआ करते थे. यह परिवार अपने निहित स्वार्थों तथा महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कांग्रेस की महासमिति तथा नेहरू की इष्ट देव की तरह पूजा किया करता था.

(जारी)