वेणु गोपाल की एक कविता आपने कल पढ़ी थी. उसी क्रम में आज प्रस्तुत है उनकी एक और रचना:
यह
आपकी ग़लत मांग है
कवि से
कि वह ख़रीदकर
शराब पिए
ज़िन्दगी के बारे में
कुछ कहने से पहले
ज़िन्दगी जिए
वरना चुपचाप रहे
होंठ सिए
आख़िर कवि है वह
और कसूर आपका है
कि आप ही ने बता रखा है उसे
कि वह वहाँ पहुँच सकता है
जहाँ रवि नहीं पहुँच सकता।
(चित्र: पाब्लो पिकासो की १९१० की रचना द पोयट)
8 comments:
यह कविता पता नहीं क्यों मुझे बहुत अपील करती है। काफ़ी पहले हमकलम पर लगाई थी।
फिर से पढ़वाने का आभार
achci rachna aabhaar aur chitr bhi naayab hai...
ओह ! वेणु
कवि कुछ माँगने का अवसर कहाँ देता है
वह तो बिन माँगे ही दिये जा रहा है ज़बरदस्ती
नहीं लो तो बुरा मानता है
रवि उससे छुपकर जायेगा कहाँ बेचारा
brain storming
http://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
khoob likha hai bohot accha laga yeh pad kar aapse mil kar behad khusi hui...
वाह रे कवि, सब जगह जाए और वही बैठा रहे .
सब की जिन्दगी सुनाये और अपनी ढूँढ न पाए ...
jab tak mujhmey dam thaa,
mujhko nahi uthaya logon ney.
jab mera dam nikal gaya,
Tab mujhey uthaney aaye log.
kuch to log kahengey
शानदार... अच्छी है. आपकी ब्लागिंग का मुरीद हूँ..
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