Thursday, June 17, 2010

जलसा - साल की एक बड़ी साहित्यिक घटना



जाने माने कवि श्री असद ज़ैदी ने हाल ही में अपनी एक एक पुरानी महत्वाकांक्षी योजना को ठोस सूरत देते हुए जलसा नाम के प्रकाशन का पहला अंक निकाला है. इसे वे साहित्य और विचार का अनियतकालीन आयोजन कहते हैं. अंग्रेज़ी के विख्यात प्रकाशन ग्रान्टा की तर्ज़ पर इसे एक उपशीर्षक दिया गया है - अधूरी बातें. जाहिर है अगले अंकों में यह उपशीर्षक अलग अलग होंगे. बिना किसी विज्ञापन की मदद से छपी इस पत्रिका/पुस्तक की छपाई और समायोजन बेहतरीन है और देश के युवा और वरिष्ठ कवि-लेखकों की महत्वपूर्ण रचनाएं इसमें शामिल हैं.

जलसा के आवरण पर मकबूल फ़िदा हुसैन की पेन्टिंग पोर्ट्रेट ऑफ़ एन अम्ब्रेला - कॉन्वर्सेशन’ है. जलसा के इस अंक को मंगलेश डबराल को समर्पित किया गया है. रचनाकारों की सूची वृहद है और रचनाओं की गुणवत्ता उत्साह बढ़ाने वाली. विनोद कुमार शुक्ल, चन्द्रकान्त देवताले, लीलाधर जगूड़ी, अशोक वाजपेई, ज्ञानेन्द्रपति, वीरेन डंगवाल, देवीप्रसाद मिश्र, लाल्टू, कुमार अम्बुज, सत्यपाल सहगल, निर्मला गर्ग, अजन्ता देव, नीलेश रघुवंशी, पंकज चतुर्वेदी और शिरीष मौर्य की कविताएं हैं. तादेयूश रूज़ेविच और पाई चुई यी की कविताओं का क्रमशः उदय प्रकाश और त्रिनेत्र जोशी द्वारा किए गए अनुवाद हैं और मनमोहन, शुभा, कृष्ण कल्पित, देवीप्रसाद मिश्र, योगेन्द्र आहूजा, रवीन्द्र त्रिपाठी, ज्योत्सना शर्मा, शिवप्रसाद जोशी और प्रियम अंकित की गद्य रचनाएं.

प्रूफ़ की गलतियां कतई नहीं हैं (कम से कम मुझे तो अब तक नज़र नहीं आईं) और बढ़िया कागज़ पर छपी इस २१६ पृष्ठों की पत्रिका की कीमत मात्र एक सौ पचास रुपए है. मेरा ठोस यक़ीन है कि अर्से बाद हिन्दी साहित्य को एक समग्र और विश्वसनीय प्लेटफ़ॉर्म मिला है.

असद जी इसे पूर्णतः विज्ञापनमुक्त रखना चाहते हैं और स्पष्ट कहते हैं कि पत्रिका किसी भी सूरत में फ़ोकट में नहीं बांटी जाएगी जैसा कि हिन्दी की तमामतर लघु पत्रिकाएं करती आई हैं. अगर आप अपनी लाइब्रेरी को थोड़ा और सम्पन्न बनाना चाहते हैं तो यक़ीनन जलसा आपके संग्रह में होनी चाहिये. जलसा को प्राप्त करने के लिए नीचे लिखे पते पर सम्पर्क किया जा सकता है:

असद ज़ैदी
बी- ९५७, पालम विहार,
गुड़गांव १२२ ०१७

टेलीफ़ोन: 09868126587, ईमेल: jalsapatrika@gmail.com

जलसा के इस अंक में देवीप्रसाद मिश्र की सत्रह कविताएं और एक कहानी प्रकाशित हुई है. बिल्कुल नए डिक्शन और अनूठे ब्लैक ह्यूमर के साथ देवीप्रसाद मिश्र अपनी कविता-श्रृंखला में तेज़ी से बदल रहे हमारे समय की कई महत्वपूर्ण बातों को पकड़ पाने में कामयाब हुए हैं. एक बानगी देखिये
:

फ़्रेंच सिनेमा

(लगे हाथ नग्नता पर एक फ़ौरी विमर्श)

ख़ान मार्केट के पास जहां कब्रिस्तान है
वहां बस रुकती नहीं है - मैं चलती बस से
उतरा और मरते-मरते बचा : यह फ़्रेंच फ़िल्म का कोई
दृश्य होता जिनकी डीवीडी लेने मैं
क़रीब क़रीब हर हफ़्ते उसी तरफ़ जाया करता हूं

यह हिन्दी फ़िल्मों का कोई दृश्य शायद ही हो पाता क्योंकि
इन फ़िल्मों का नायक अमूमन कार में चलता है
और बिना आत्मा के शरीर में बना रहता है वह देश में भी
इसी तरह बहुत ग़ैरज़िम्मेदार तरीक़े से घूमता रहता है
वह विदेशियों की तरह टहलता है और सत्तर करोड़ की फ़िल्म में
हर दो मिनट में कपड़े बदलता है और अहमक पूरी फ़िल्म में
पेशाब नहीं करता है और अपने कपड़ों से नायिका के कपड़ों को इस तरह से
रगड़ता है कि जैसे वह संततियां नहीं विमल सूटिंग के थान पैदा करेगा

मतलब यह कि इन फ़िल्मों में बिना हल्ला मचाए निर्वस्त्र हुआ नहीं जाता
इन फ़िल्मों में सत्ता को नंगा नहीं किया जाता
जो कलाओं की दो बुनियादी वैधताएं हैं

(जलसा से और भी रचनाएं कबाड़ख़ाने पर जल्द देखिये)

11 comments:

Ek ziddi dhun said...

आवरण चित्र ही शानदार है. इस चित्र के अपने मानी हैं पर इस वक़्त इसे छापने के और भी बड़े अर्थ हैं. `जलसा` इसी तरह होता रहे, प्रतिरोध में.
संपादक पर यह वक़्त दबाव बनाने का है ताकि वो इसे अनियतकालीन होते भी निरंतर रखे, साल में कम से कम चार. इसका लिए इसके सदस्य बनना-बनाना तो है ही जरूरी.

banerjee sankamum said...

kabarkhana agar itna sundar to baythakkhana kaisa hoga

आचार्य उदय said...

बढिया प्रस्तुति।

मुनीश ( munish ) said...

very true !

मुनीश ( munish ) said...

In fact, i have seen that kabristan near Khan market and bus really does not stop there , but buck stops there . Yes i do agree with the poet .

महेश वर्मा mahesh verma said...

असद ज़ैदी साहब के काम में गुणवत्ता तो होगी ही.. इसका हार्दिक स्वागत किया जाना चाहिये. जो नाम आपने दिए हैं वे सब भी आसंदिग्ध हैं. अच्छी जानकारी के लिए आभार. महेश वर्मा, अंबिकापुर, छत्तीसगढ़.

शिरीष कुमार मौर्य said...

यह पत्रिका एक दिन "नई पहल" बनेगी. विज्ञापन-रहित होने-रहने का संकल्प अनूठा है. sahity mein jalson kee bharmaar है par एक samarpit kavi का ye jalsa to dekhiye. jalson ke khilaf एक jalsa. देवी भाई भी usi star par उतने ही anoothe hain. एक soochna main atirikt dena chahoonga कि is पत्रिका kee aajeevan sadasyata rashi do hazaar है- sampark pata ashok da ne diya ही है - to aaiye hath uthaein ham भी.......

आशुतोष पार्थेश्वर said...

जलसा जम के हो, स्वागत है, बहुत बहुत !
बस जल्द हाथ में लेने की इच्छा है ।

अजित गुप्ता का कोना said...

बहुत बधाई, बस गुटबाजी में नहीं फंसे।

सोनू said...

फ्रेंच सिनेमा में नग्नता। जर्मन साहित्य में नग्नता का प्रसंग

सोनू said...

देवीप्रसाद मिश्र की 18 रचनाओं को शीर्षक दिया गया है "संकट द्वार"। अनुक्रमणी में यह "प्रवेश द्वार" छप गया।