Thursday, June 24, 2010

उसके एक हाथ में कैपिटल थी और दूसरे हाथ में दास कैपिटल

जलसा के पहले अंक में प्रकाशित देवीप्रसाद मिश्र की कविता श्रृंखला से एक और टुकड़ा पेश है:

चैनल पर रेडिकल

झारखण्ड के जंगलों जैसी दाढ़ी वाले एंकर को आप
इस तरह भी पहचान सकते हैं कि वह महादेवी वर्मा जैसा
चश्मा लगाए रहता था - आप कह सकते हैं वह छायावादी लगता था
वैसा ही रोमांटिक वैसा ही आल बाल जाल वैसा ही केश कुंचित भाल

इलाचन्द्र जोशी के छोटे भाई जैसा

मृणाल सेन के सबसे छोटे भाई जैसा
और युवा अंबेडकर के बड़े भाई जैसा

चिट फ़ंड वाले टीवी चैनल में नौकरी करते हुए उसने भारतीय राज्य को
बदलने का सपना देखा - यह उसकी ऐतिहासिक भूमिका थी मतलब कि आप
पांच छः लाख रुपये महीना लेते रहें
नव नात्सीवादी प्रणाम करते रहें और नक्सली राज्य बनाने का सपना देखते
रहें ... तो यह उसकी दृढ़ता की व्याख्या थी

तो जैसा कि उसके बारे में कहा गया कि उसके
एक हाथ में कैपिटल थी और दूसरे हाथ में दास कैपिटल
लेकिन बात को यहीं ख़त्म नहीं मान लिया गया कहा गया कि
दास कैपिटल का मायने है कैपिटल का दास मतलब कि
रेडिकल इसलिए हैं कि बाज़ार में
एंकर विद अ डिफ़रेन्स का हल्ला बना रहे

आप जानना चाहेंगे कि मेरी उसके बारे में क्या राय है
तो मैं कहूंगा कि वह अर्णव और प्रणव से तो बेहतर था वह नैतिकता का पारसी
थियेटर था और चैनलों के माध्यम से क्रान्ति का वह सबसे बड़ा आख़िरी प्रयत्न
था और ... और क्या कहा जाय

उसने किसी की परवाह नहीं की -
श को निरन्तर स कहने की भी नहीं
उसने शांति को सांति कहा ज़ोर को
पूरा जोर लगा कर जोर

शरच्चंद्र के एक डाक्टर पात्र की तरह
क्षयग्रस्त मनुष्यता को ठीक करने
वह फिर आएगा किसी चैनल पर
बदलाव का गोपनीय कार्यभार लेकर
डेढ़ करोड़ के पैकेज पर

तब तक आप देव डी का अधरुपतन देखिये
और रंग दे बसन्ती का बॉलीवुडीय विद्रोह -
रेड कॉरिडोर में बिछी लैंडमाइनों की
भांय भांय के बैकड्रॉप में

3 comments:

Pratibha Katiyar said...

kamaal hai! aisa khara kam milta hai sunne ko....

कामता प्रसाद said...

कविता का कथ्‍य हास्‍यबोध से लबरेज है। आपने हमने और उन्‍होंने भी कई-कई बार यह सुना है कि लेनिन ने कहीं यह नहीं लिखा है कि पाजामा फाड़कर कॉमरेड बन जाओ। अभी-अभी मेरे एक फाजिल दोस्‍त कह रहे थे कि ढेरों संपत्ति बनाये रखते हुए और अखबार की नौकरी को भी बचाये रखते हुए इंकलाब करेंगे और उनका तर्क यह था कि रूस में लेनिन के पहले कोई पार्टी नहीं था और उस वक्‍त रूस की धरती पर मार्क्‍सवाद के बीज रोपने का काम किया था प्‍लेखानोव ने। वे इतिहास को खींचकर पीछे ले जाना चाहते हैं और वह भी सिर्फ इस वजह से कि संपत्ति की दुनिया, हैसियत की दुनिया में भी रुतबा कायम रहे।
बताने की बात नहीं लगती कि लेनिन ने यह जरूर कहा है कि मजदूरों की पार्टी में पूरावक्‍ती कार्यकर्ता मेरुदंड होंगे और संपत्ति संबंधों से उनका निर्णायक विच्‍छेद होगा।
लेकिन जहां पैसा होता है वहां पर रेखागणित के प्रमेय भी झुठला दिये जाते हैं।

मुनीश ( munish ) said...

JEALOUSY at its artistic best !