जिस दिन मेरे शब्द
धरती थे ...
मैं दोस्त था गेहूं की बालियों का.
जिस दिन मेरे शब्द
क्रोध थे
मैं दोस्त था बेड़ियों का.
जिस दिन मेरे शब्द
पत्थर थे
मैं दोस्त था धाराओं का,
जिस दिन मेरे शब्द
एक क्रान्ति थे
मैं दोस्त था भूकम्पों का.
जिस दिन मेरे शब्द
कड़वे सेब थे
मैं दोस्त था एक आशावादी का.
लेकिन जिस दिन मेरे शब्द
शहद में बदले ...
मधुमक्खियों ने ढंक लिया
मेरे होठों को! ...
(चित्र: फ़िलिस्तीनी कलाकार इस्माइल शमाउत का बनाया महमूद दरवेश का पोर्ट्रेट (१९७१))
4 comments:
गंभीर विचारधारा।
शब्द
लेकिन जिस दिन मेरे शब्द
शहद में बदले ...
मधुमक्खियों ने ढंक लिया
मेरे होठों को! ...
दरवेश जी आपको पढना बहुत अच्छा लगता है ..उम्दा जवाब नहीं आपका !!
अद्भुत रचना है.
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