Sunday, September 12, 2010

यानी है मांझा खूब मंझा उनकी डोर का - 4

(पिछली किस्त से जारी)


धागे जो बनेंगे पतंगकाट मांझा!







(जारी)

2 comments:

abcd said...

introducing SUNRAYS--to you.

अजेय said...

पतंग पर आज यह नया -नया क्या है?
गीला चमकीला
डोर से लिपट फिसलता हुआ
जो उंगलियों तक पहुँच गया
सदियों से बन्द मुट्ठियों को
तरोताज़ा कर गया

लगता है बहुत ऊपर कहीं
पतंग की दुनिया मे
आज जम कर बारिश हुई है.