Saturday, September 11, 2010

अल रबवेह - भाग चार

(पिछली किस्त से जारी)

मैं समय-समय पर उसका मुआयना कर रहा था. आधे घन्टे के भीतर वह मर चुकी थी. हां, वह एक नर चिड़िया थी. मुझे उसके वज़न ने आश्चर्य में डाला. अब उसका भार बर्फ़ में उठाए जाते समय से कम हो चुका था. इस बात को जांचने के लिए मैंने उसे एक हाथ से दूसरे में रख कर देखा. यह ऐसा था मानो जब वह जीवित थी, उसकी ऊर्जा और बचे रहने के उसके संघर्ष ने उसका भार बढ़ा दिया था. अब वह तक़रीबन भारहीन थी,

जब मैं अल रबवेह की पहाड़ी की घास पर बैठा, कुछ वैसा ही घटा. महमूद की मृत्यु ने उनका भार कम कर दिया था. जो बच रहा था, फ़क़त उनके शब्द थे.

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महीने बीत चुके हैं - एक एक महीना भविष्यवाणियों और ख़ामोशी से भरा हुआ. आपदाएं एक बेनाम डेल्टा की तरफ़ एक साथ बहती आ रही हैं. इसे भूगोलशास्त्री कोई नाम देंगे, लेकिन वे बाद में आएंगे, बहुत बाद में. आज कुछ भी नहीं किया जा सकता. सिवाय इसके कि इस बेनाम डेल्टा के कड़वे पानियों पर चलते रहा जाए.

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दुनिया की सबसे बड़ी कारागार गाज़ा, एक बूचड़ख़ाने में तब्दील की जा रही है. "पट्टी" शब्द (गाज़ा पट्टी से) को रक्त से भिगोया जा रहा है जैसा कि पैंसठ साल पहले "गैटो" शब्द के साथ किया गया था.

दिन-रात इज़राइली सेनाओं द्वारा पन्द्रह लाख नागरिक-जनसंख्या पर बमों, फ़ॉस्फ़ोरस के हथियारों और मशीन गनों से धावा बोला जा रहा है. अन्तर्राष्ट्रीय पत्रकारों की, जिन्हें इज़राइल द्वारा गाज़ा पट्टी में प्रवेश करने से प्रतिबन्धित किया जा चुका है, हर ताज़ा रपट बताती है कि अपंग बना दिए गयों और मृतकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. सब से स्थिर आंकड़ा यह है कि एक इज़राइली हताहत का मतलब एक सौ फ़िलिस्तीनी मृतकों से है, जिनमें से क़रीब आधे स्त्रियां और बच्चे होते हैं. इस तरह उस क़त्ल-ए-आम का निर्माण किया जा रहा है. अधिकतर रिहाइशों में न पानी है न बिजली. हस्पतालों में चिकित्सकों, दवाओं और जेनेरेटरों की कमी है. क़त्ल-ए-आम के बाद आती है आपूर्ति पर रोक और घेराबन्दी..

दुनिया में इसके विरोध में कुछ आवाज़ें उठी हैं, लेकिन धनवानों की सरकारें, जिनके पास अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया है और गर्व करने को नाभिकीय हथियारों का ज़ख़ीरा, इज़राइल को आश्वस्त करती रहती हैं कि उसके सिपाहियों द्वारा जारी गतिविधियों को नज़र अन्दाज़ किया जाता रहेगा.

(जारी)

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