महमूद दरवेश की कविताएं - ६
मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी
मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी
विजेता आते हैं, विजेता जाते हैं ...
मुश्किल होता जा रहा है मेरे लिए आईनों में अपना चेहरा याद रखना
मेरे लिए स्मृति बन जाओ
ताकि मैं वह देख सकूं जिसे मैं खो चुका
बहिर्गमन के इतने सारे रास्तों के बाद अब कौन हूं मैं?
बर्बाद हो चुके एक दृश्य पर खड़ी एक ऊंची चट्टान पर
एक पत्थर है मेरा जिस पर मेरा नाम खुदा हुआ है.
सात सौ बरस मुझे अपने पहरे में ले जाते हैं शहर की दीवारों के पार.
समय फ़िज़ूल घूमता जाता है मेरा बीता हुआ कल बचाने के वास्ते
जो मुझ में और दूसरों में
मेरे निर्वासन के इतिहास को जन्म देता है.
मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी
विजेता आते हैं, विजेता जाते हैं ...
दक्षिण की तरफ़ जाते हुए जबकि
परिवर्तन की खाद पर सड़ा करते हैं मुल्क.
मैं जानता हूं कल मैं कौन था
लेकिन कोलम्बस के अटलान्टिक झण्डों के तले
कल कौन होऊंगा मैं?
मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी, एक तार बन जाओ
मिश्र में नहीं है कोई मिश्र. फ़ेज़ में
फ़ेज़ नहीं, और सीरिया है बहुत दूर.
मेरे जनों के झण्डे पर कोई बाज़ नहीं
मंगोलों के तेज़ घोड़ों के रौंदे हुए
खजूर के पेड़ों के पूरब से नहीं बहती कोई नदी.
किस अन्दालूसिया में मेरि मुलाक़ात हुई अपने अन्त से?
यहां, इस जगह?
या वहां?
मैं जानता हूं मैं मर चुका, छोड़कर जा चुका इस जगह पर
जो सर्वोत्तम था मुझमें: मेरा अतीत
मेरे पास मेरे गिटार के अलावा कुछ नहीं बचा है.
मेरे गिटार का तार बन जाओ, पानी
विजेता आते हैं, विजेता जाते हैं ...
* फ़ेज़: एक पारम्परिक तुर्की टोपी
2 comments:
महमूद दरवेश जी को पढ़ना अद्भुत रहा..आपका आभार...
बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने .......
पढ़िए और मुस्कुराइए :-
आप ही बताये कैसे पार की जाये नदी ?
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