बहाउद्दीन क़ुतुबुद्दीन एन्ड पार्टी की गाई हजरत अमीर ख़ुसरो की यह क़व्वाली मैंने काफ़ी पहले लगाई थी. उसका प्लेयर अब काम करना बन्द कर चुका है.
कुछेक दोस्तों ने इस बाबत शिकायत की. सो दोबारा लगा रहा हूं इस ख़ूबसूरत रचना को.
आनन्द लें:
(स्रोत: सोल म्यूज़िक फ़्रॉम इन्डस वैली)
2 comments:
शुक्रिया जी....फुल वोल्यूम में इसे देर रात सुनेगे
उदात्त संगीत.
लिरिक्स भी दीजिए, रूप सरूप मे जलवा फितन , इतना ही स्मझ आया. वह भी इस लिए कि आप ने ऊपर लिख रखा है.
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