Wednesday, November 10, 2010
कैसे दुखों के मौसम आए कैसी आग लगी यारो
ग़ज़ल / ओबैदुल्लाह अलीम
तेरे प्यार में रुसवा होकर जायें कहाँ दीवाने लोग।
जाने क्या क्या पूछ रहे हैं ये जाने पहचाने लोग।
हर लम्हा एहसास की सहबा रूह में ढलती जाती है'
जीस्त का नशा कुछ कम हो तो हो आयें मैखाने लोग।
जैसे तुम्हें चाहा है हमने कौन भला यूं चाहेगा,
माना और बहुत आयेंगे तुमसे प्यार जताने लोग।
यूँ गलियों बाज़ारों में आवारा फिरते रहते हैं'
जैसे इस दुनिया में सभी आए हों उम्र गंवाने लोग।
आगे पीछे दायें बाएँ साए - से लहराते हैं,
दुनिया भी तो दश्ते-बला है हम ही नहीं दीवाने लोग।
कैसे दुखों के मौसम आए कैसी आग लगी यारो,
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नजराने लोग।
कल मातम बे-कीमत होगा आज इनकी तौकीर करो,
देखो खूने-जिगर से क्या -क्या लिखते हैं अफ़साने लोग।
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* कवि परिचय और उनकी कुछ और रचनायें शीघ्र ही!
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6 comments:
बेहतरीन व लाजवाब।
bahut sundar prastuti...aabhaar
dhanyvaad.. itni sundar gazal.. kavi prichay kee intjaari rahegi..
kal iska post kaa link mei charchaa manch par share karuni.. aapka Abhaar
कैसे दुखों के मौसम आए कैसी आग लगी यारो,
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नजराने लोग।
बहुत बहुत खूब| दिल को छूने वाली पंक्तियाँ|
दैरो-हरम में चैन जो मिलता क्यों जाते तो मैखाने लोग........
जान के सबकुछ कुछ भी न जाने हैं कितने बेगाने लोग
शायर कौन? बूझो तो जानें !
कृपया बेगाने को अनजाने पढ़ें...
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