पुर्तगाली महाकवि-चिन्तक फ़र्नान्दो पेसोआ से कबाड़ख़ाने के पाठक अपरिचित नहीं. उनके सघन गद्य की बानगी एकाधिक बार इस ब्लॉग पर प्रस्तुत की जा चुकी है. हाल ही में उनकी पुस्तक द बुक ऑफ़ डिस्क्वायट मुझ तक मेरे एक मित्र के मार्फ़त पहुंची है. फ़िलहाल के वास्ते पेश कर रहा हूं इस अद्भुत पुस्तक के कुछ चुनिन्दा टुकड़े
१७२.
यह ढाल पनचक्की तक पहुंचता है लेकिन मेहनत कहीं नहीं पहुंचती.
शुरूआती शरद की दोपहर थी, आसमान में एक ठंडी, मृत ऊष्मा थी और बादल नमी के अपने कम्बल से रोशनी को कुचले दे रहे थे.
नियति ने मुझे फ़क़त दो चीज़ें दीं - बहीखातों का हिसाबकिताब रख सकना और सपने देखने की प्रतिभा.
१८६.
अगर नियति का कोई मतलब होता तो मेरा दिल देवताओं के पास चला जाता! अगर देवताओं की कोई नियति होती तो मैं नियति के पास चला जाता!
कभी कभी मैं रातों को जाग जाता हूं. मुझे अहसास होता है कि अदृश्य हाथ मेरी नियति को बुन रहे हैं.
यहां पड़ा है मेरा जीवन. मेरे भीतर की कोई भी चीज़ कहीं कोई ख़लल नहीं डालती.
१८८.
चाहे उसका जीवन कितना ही मुश्किलों भरा क्यों न हो, किसी भी साधारण इन्सान को कम से कम यह सुख तो है कि वह उस बारे में न सोचे. जीवन को जस का तस जीना, किसी कुत्ते या बिल्ली जैसे बाहरी तौर पर जीवित रहना - ज़्यादातर लोग इसी तरह जीते हैं, अगर हमारे भीतर कुते-बिल्ली जैसा सन्तोष आ जाए तो जीवन को ऐसे ही जिया जाना चाहिए.
सोचने का मतलब है विनाश. सोचने की प्रक्रिया में खुद विचार नष्ट हो जाता है, क्योंकि सोचने का मतलब होता ही क्षय करना है. अगर इन्सानों को पता होता कि जीवन के रहस्य के बारे में कैसे विचार किया जाए, अगर उन्हें पता होता कि किसी भी कार्य की एक-एक तफ़सील की आत्मा पर जासूसी करती हज़ारों जटिलताओं को कैसे महसूस किया जाए, तो वे कभी कोई काम नहीं करते - वे तो जीते भी नहीं. वे डर के कारण अपनी हत्या कर लेते, ठीक उन्हीं की तरह जो अगले दिन गिलोटीन पर गरदन काटे जाने से बचने के लिए आत्महत्या कर लेते हैं.
१८९.
बरसाती दिन
हवा नकाबपोश पीली है, जिस तरह ज़र्द पीला नज़र आएगा गंदले सफ़ेद से देखे जाने पर. सलेटी हवा में बमुश्किल कहीं पीला है, लेकिन सलेटी के ज़र्दपन की उदासी में एक पीला रंग है.
२१८
मैं समय और अन्तरिक्ष से पुराना हूं क्योंकि मैं चेतन हूं. चीज़ें मुझसे बनती हैं; प्रकृति मेरी सनसनियों की सन्तान है.
मैं खोजता हूं और मुझे नहीं मिलता. मैं इच्छा करता हूं पर वह मेरे पास नहीं हो सकता.
मेरे बिना सूरज उगता है और मर जाता है; मेरे बिना बरसात गिरती है और हवा दहाड़ती है. यह मेरे कारण नहीं है कि समय बीतता है, बारह महीने होते हैं, मौसम होते हैं.
पृथ्वी की ज़मीनों की तरह मेरे भीतर संसार का बादशाह, जिसे मैं अपने साथ ले कर नहीं जा सकता ...
१७२.
यह ढाल पनचक्की तक पहुंचता है लेकिन मेहनत कहीं नहीं पहुंचती.
शुरूआती शरद की दोपहर थी, आसमान में एक ठंडी, मृत ऊष्मा थी और बादल नमी के अपने कम्बल से रोशनी को कुचले दे रहे थे.
नियति ने मुझे फ़क़त दो चीज़ें दीं - बहीखातों का हिसाबकिताब रख सकना और सपने देखने की प्रतिभा.
१८६.
अगर नियति का कोई मतलब होता तो मेरा दिल देवताओं के पास चला जाता! अगर देवताओं की कोई नियति होती तो मैं नियति के पास चला जाता!
कभी कभी मैं रातों को जाग जाता हूं. मुझे अहसास होता है कि अदृश्य हाथ मेरी नियति को बुन रहे हैं.
यहां पड़ा है मेरा जीवन. मेरे भीतर की कोई भी चीज़ कहीं कोई ख़लल नहीं डालती.
१८८.
चाहे उसका जीवन कितना ही मुश्किलों भरा क्यों न हो, किसी भी साधारण इन्सान को कम से कम यह सुख तो है कि वह उस बारे में न सोचे. जीवन को जस का तस जीना, किसी कुत्ते या बिल्ली जैसे बाहरी तौर पर जीवित रहना - ज़्यादातर लोग इसी तरह जीते हैं, अगर हमारे भीतर कुते-बिल्ली जैसा सन्तोष आ जाए तो जीवन को ऐसे ही जिया जाना चाहिए.
सोचने का मतलब है विनाश. सोचने की प्रक्रिया में खुद विचार नष्ट हो जाता है, क्योंकि सोचने का मतलब होता ही क्षय करना है. अगर इन्सानों को पता होता कि जीवन के रहस्य के बारे में कैसे विचार किया जाए, अगर उन्हें पता होता कि किसी भी कार्य की एक-एक तफ़सील की आत्मा पर जासूसी करती हज़ारों जटिलताओं को कैसे महसूस किया जाए, तो वे कभी कोई काम नहीं करते - वे तो जीते भी नहीं. वे डर के कारण अपनी हत्या कर लेते, ठीक उन्हीं की तरह जो अगले दिन गिलोटीन पर गरदन काटे जाने से बचने के लिए आत्महत्या कर लेते हैं.
१८९.
बरसाती दिन
हवा नकाबपोश पीली है, जिस तरह ज़र्द पीला नज़र आएगा गंदले सफ़ेद से देखे जाने पर. सलेटी हवा में बमुश्किल कहीं पीला है, लेकिन सलेटी के ज़र्दपन की उदासी में एक पीला रंग है.
२१८
मैं समय और अन्तरिक्ष से पुराना हूं क्योंकि मैं चेतन हूं. चीज़ें मुझसे बनती हैं; प्रकृति मेरी सनसनियों की सन्तान है.
मैं खोजता हूं और मुझे नहीं मिलता. मैं इच्छा करता हूं पर वह मेरे पास नहीं हो सकता.
मेरे बिना सूरज उगता है और मर जाता है; मेरे बिना बरसात गिरती है और हवा दहाड़ती है. यह मेरे कारण नहीं है कि समय बीतता है, बारह महीने होते हैं, मौसम होते हैं.
पृथ्वी की ज़मीनों की तरह मेरे भीतर संसार का बादशाह, जिसे मैं अपने साथ ले कर नहीं जा सकता ...
2 comments:
बहुत कुछ पढने की इच्छा है , वक़्त कम पड़ता जा रहा है | यहाँ तो काफ्का ही घूम फिर के बार -बार आ रहा है | अभी ऑडियो बुक सुन रहे हैं 'दि कासल' की |
सोचने का मतलब है विनाश. सोचने की प्रक्रिया में खुद विचार नष्ट हो जाता है...
खूब , बहुत खूब
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