केलंग में मेरा स्वागत भारी हिमपात से हुआ है . लाहुल यूँ तो मॉनसून के हिसाब से रेन – शेडो क्षेत्र मे स्थित है. मॉनसून पीर पंजाल को प्राय: पार नहीं कर पाता. लेकिन पश्चिमी विक्षोभ (western disturbances) के लिए कोई रुकावट नहीं. सर्दियों में ये बर्फीली हवाएं सीधी घाटी में घुस आती हैं और निकासी नही होने के कारण हफ्तों बरसती रहतीं हैं. उस रात को लगभग दो फीट बरफ पड़ी और अगले सात आठ दिन बादल छाए रहे. फिर एक दिन बढ़िया धूप निकल आई. छत पर निकल कर कस्बे को निहारने लगा हूँ . पूरब की ओर विहंगम लेडी ऑफ केलंग चोटी ताज़ा गिरी बरफ में छिप गई है . रङ्चा दर्रे के नीचे से बरबोग, पस्परग और नम्ची गाँवों को धमकाते हुए तीन चार एवलांश निकल गए हैं . ड्रिल्बुरी खामोश खड़ा है . पश्चिम मे गुषगोह के जुड़वाँ हिमनद मानों दो खाए अघाए बैल जुगाली करते अधलेटे पसरे हों. केलंग टाऊन मुझे कमोवेश वैसा ही दिख रहा है जैसा पन्द्रह साल पहले छोड़ गया था. सुबह उठने पर नथुनों में धुँए की वह चिर परिचित गन्ध घुसी रहती है . यह धुआँ जो कस्बे के ऊपर बादल सा छाया रहता, घरेलू चूल्हों और सरकारी भक्कुओं से निकलता था, तक़रीबन 11 बजे छँटना शुरू हो जाता और यही सरकारी बाबुओं के दफ्तर पहुँचने का समय भी होता. दफ्तरों में स्टीम कोल के भक्कू जलते . उन्ही के ऊपर अल्युमीनियम की केतलियों में चाय उबलती रहती. हिमपात के दिनों में घरों और दफ्तरों में सब से प्राथमिकता वाला काम होता है खुद को गरम बनाए रखना. बहरहाल, मेरी प्राथमिकता है मयाड़ घाटी की यात्रा.
Thursday, March 3, 2011
मेरे साथ मयाड़ घाटी चलेंगे ? -- 2
केलंग में मेरा स्वागत भारी हिमपात से हुआ है . लाहुल यूँ तो मॉनसून के हिसाब से रेन – शेडो क्षेत्र मे स्थित है. मॉनसून पीर पंजाल को प्राय: पार नहीं कर पाता. लेकिन पश्चिमी विक्षोभ (western disturbances) के लिए कोई रुकावट नहीं. सर्दियों में ये बर्फीली हवाएं सीधी घाटी में घुस आती हैं और निकासी नही होने के कारण हफ्तों बरसती रहतीं हैं. उस रात को लगभग दो फीट बरफ पड़ी और अगले सात आठ दिन बादल छाए रहे. फिर एक दिन बढ़िया धूप निकल आई. छत पर निकल कर कस्बे को निहारने लगा हूँ . पूरब की ओर विहंगम लेडी ऑफ केलंग चोटी ताज़ा गिरी बरफ में छिप गई है . रङ्चा दर्रे के नीचे से बरबोग, पस्परग और नम्ची गाँवों को धमकाते हुए तीन चार एवलांश निकल गए हैं . ड्रिल्बुरी खामोश खड़ा है . पश्चिम मे गुषगोह के जुड़वाँ हिमनद मानों दो खाए अघाए बैल जुगाली करते अधलेटे पसरे हों. केलंग टाऊन मुझे कमोवेश वैसा ही दिख रहा है जैसा पन्द्रह साल पहले छोड़ गया था. सुबह उठने पर नथुनों में धुँए की वह चिर परिचित गन्ध घुसी रहती है . यह धुआँ जो कस्बे के ऊपर बादल सा छाया रहता, घरेलू चूल्हों और सरकारी भक्कुओं से निकलता था, तक़रीबन 11 बजे छँटना शुरू हो जाता और यही सरकारी बाबुओं के दफ्तर पहुँचने का समय भी होता. दफ्तरों में स्टीम कोल के भक्कू जलते . उन्ही के ऊपर अल्युमीनियम की केतलियों में चाय उबलती रहती. हिमपात के दिनों में घरों और दफ्तरों में सब से प्राथमिकता वाला काम होता है खुद को गरम बनाए रखना. बहरहाल, मेरी प्राथमिकता है मयाड़ घाटी की यात्रा.
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अजेय
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9 comments:
क्या हमें कुछ छायाचित्र भी देखने को मिलेंगे ?
kitane sundar drishya honge .. jab kalpana kii aankhon men itana soundry samaa raha hai tab ..sachmuch men to vah barf ruyii ka phaahaa lag rahi hogi
पढ़कर ही ठंड लग रही है।
# नीरज, फोटो अपलोड करने में दिक़्क़त आ रही है. शुक्रिया सिद्धेश्वर भाई,बरफ वाले फोटो लगाई ए न?
अजेय भाई कभी केलांग आऊ तो रङ्चा दर्रे की ओर ले चलोगे ? कितनी ऊंचाई होगी ? रङ्चा दर्रे के पार कौन कौन से गांव हैं? केलांग से रङ्चा दर्रे की ओर जाते हुए पडने वाले गांव? कितनी ही जानकारियां चाहिए। यदि समय निकाल सको तो मुझे बता देना, चला आऊंगा। आपके साथ गांवों से गुजरना मेरे लिए एक अलग अनुभव होगा।
thats better , sidheshwar bhai, thanks. mai^ bhee koshish kar raha hoon. shaayad aadhee raat ko ho jaaye.
विजय भाई,ऊपर दूसरी तस्वीर रंग्चा दर्रे की है. केलंग के ठीक सामने . यहाँ चढ़्ते हुए, प्र्ख्यात कारदंग गाँव और मठ रास्ते मे आएंगे. ऊँचाई, लगभग 3600 मीटर. पार करने पर आप चन्द्रा घाटी में होंगे. यानी उसी घाटी मे, जहाँ से हो कर आप केलंग पहुँचे थे. उस तरफ पहला गाँव आप को खाँग्सर दिखेगा. लेकिन आप टीलिङ , होते हुए शेल्टू( गोंधला) के पास मनाली लेह हाईवे पर उतर सकते हैं. यह *आप* के लिए आधे दिन का ट्रेक है. इस की कुछ तस्वीरें आप को मेरे पुराने पोस्ट मे मिलेंगी. एक बार यहाँ लाहुल के इतिहासकार तोबदन जी के साथ जा चुका हूँ . आप के साथ अलग मज़ा आएगा. चले आईए. सुबह केंलंग से चल कर घंटा पर्वत की परिक्रमा करते हुए शाम को हम फिर केलंग में होंगे .
thats better , sidheshwar bhai, thanks. mai^ bhee koshish kar raha hoon. shaayad aadhee raat ko ho jaaye.
विजय भाई,ऊपर दूसरी तस्वीर रंग्चा दर्रे की है. केलंग के ठीक सामने . यहाँ चढ़्ते हुए, प्र्ख्यात कारदंग गाँव और मठ रास्ते मे आएंगे. ऊँचाई, लगभग 3600 मीटर. पार करने पर आप चन्द्रा घाटी में होंगे. यानी उसी घाटी मे, जहाँ से हो कर आप केलंग पहुँचे थे. उस तरफ पहला गाँव आप को खाँग्सर दिखेगा. लेकिन आप टीलिङ , होते हुए शेल्टू( गोंधला) के पास मनाली लेह हाईवे पर उतर सकते हैं. यह *आप* के लिए आधे दिन का ट्रेक है. इस की कुछ तस्वीरें आप को मेरे पुराने पोस्ट मे मिलेंगी. एक बार यहाँ लाहुल के इतिहासकार तोबदन जी के साथ जा चुका हूँ . आप के साथ अलग मज़ा आएगा. चले आईए. सुबह केंलंग से चल कर घंटा पर्वत की परिक्रमा करते हुए शाम को हम फिर केलंग में होंगे .
अद्भुत!!
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