राजेश शर्मा की कविताएं आप दो दिन से यहां पढ़ रहे हैं. उसी क्रम को जारी रखते हुए आज एक और कविता भोपाल त्रासदी को लेकर
प्रभुदयाल से एक और मुलाक़ात
एक. भोपाल की एक लड़की का बयान
उस दिन टमाटर की सब्ज़ी
पक रही थी
बापू दरवाज़े पर हुक्का
गुड़गुड़ा रहे थे.
एकाएक कलेजे में आग उतरने लगी
आंखों में जलते लावे समा गए
छोटा भाई चीखा
एक निचाट चीख़
अकड़ा-औंधाया और
ख़त्म हो गया.
बापू पहले हकबकाए फिर
जैसे किसी सनसनाते घोड़े से उछलकर
भैया के पास आए
उन्होंने मुठ्ठियां हवा में चलाईं और
वहीं लुढ़क गए.
मां अस्पताल में जाकर
ख़त्म हुई.
क्या था वह दिन
कलेजे की आग और
आंख के लावे के बीच
कोई अहसास नहीं था
था एक वहशी सन्नाटा
देखते देखते आदमी
पेड़ों में बदल गया और
पेड़ ज़ख़्मी प्रेत की तरह
हाहाकार करने लगे
हां! अंगीठी पर आलू-टमाटर पक रहा था
दूसरे दिन प्रभुदयाल आए
दो. इंतज़ार का गणित
प्रभुदयाल ने मुकदमा दायर कर दिया है
दुनिया की बड़ी तिज़ोरी पर
मुस्तैद बहस की है
कि श्मशान का हिसाब किसे देना है
प्रभुदयाल मुआवज़ा मांगता है
मुआवज़ा देता है
लोग इंतज़ार करते हैं!
6 comments:
Dil-o-dimag ko jhakjhor dene wali kavita.
हां! अंगीठी पर आलू-टमाटर पक रहा था
ek trasdi ne kitne ghar v kitne dil ujaad dale ....kaun hisab laga sakta hai .
मन को आन्दोलित करती पंक्तियाँ।
दुनिया की बड़ी तिज़ोरी पर
मुस्तैद बहस की है
कि श्मशान का हिसाब किसे देना है
प्रभुदयाल मुआवज़ा मांगता है ek katu satya..bahut sanjeeda tareeke se baya kar diya aapne..
kya khu mere sare sabad shes 4 tipniyo me hai...
१९८४ से २०११... मुआवज़ा अब भी नहीं मिला है.देख्ना सिर्फ़ यह है कि प्रभुदयाल कब तक लडता है.
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