Thursday, March 24, 2011
अलविदा बॉब
बीती बीस मार्च को बॉब क्रिस्टो का देहावसान हुआ. क्या इसे महज़ इत्तेफ़ाक़ मानूं कि इसी महीने ६-१२ मार्च वाले इन्डियन एक्सप्रेस के साप्ताहिक सप्लीमेन्ट आई में बॉब पर एक दिलचस्प स्टोरी छपी थी. ऑस्ट्रेलियाई मूल के बॉब हिन्दी की फ़ॉर्मूला फ़िल्मों के अंग्रेज़ विलेन के पर्याय थे. सिडनी में बतौर सिविल इन्जीनियर काम करते हुए बॉब पुराने मकानों को पुनर्जीवन देने का काम किया करते थे.
बॉब के हिन्दी फ़िल्मों से जुड़ने की कहानी ख़ासी दिलचस्प है. १९७६ में वे एक सैन्य प्रोजेक्ट के सिलसिले में दाक्षिण अफ़्रीका में थे जहां उनके होटल के बिस्तर पर कोई शख़्स एक पत्रिका भूल गया था. पत्रिका के आवरण पर परवीन बाबी थी. परवीन के बारे कें जानने के बाद पत्रिका को अपने सूटकेस में धर कर बॉब ने तय किया वे किसी तरह बम्बई जाकर इस ख़ूबसूरत स्त्री से एक दफ़ा मिलेंगे ज़रूर.
इस के बाद उनके करियर में कई तब्दीलियां आईं जिनके चलते वे जर्मनी, अमेरिका, ज़िम्बाब्वे, सेशेल्स और वियतनाम होते हुए उन्होंने अपने को जुहू में पाया. क़िस्मत से उनकी मुलाक़ात एक ऐसे शख़्स से हुई जो उन्हें संजय ख़ान से मिलाने वाला था. संजय ख़ान से मिलने के बाद उन्होंने अपने विलेन-करियर का आग़ाज़ किया और उस के बाद कोई २०० फ़िल्मों में काम किया. परवीन बाबी से मिलने का उनका ख़्वाब द बर्निंग ट्रेन के साथ पूरा हुआ.
बम्बई आने से पहले मशहूर दिग्दर्शक फ़्रान्सिस फ़ोर्ड कोपोला की फ़िल्म एपोकैलिप्स नाव में बॉब को एक भूमिका प्रस्तुत की गई थी लेकिन जब कास्टिंग डायरेक्टर ने जाना कि बॉब सिविल इन्जीनियर हैं तो उन्हें फ़िलीपीन्स में सैट की गई इस फ़िल्म के लिए कम्बोडियाई शैली के मन्दिर बनाने का ज़िम्मा सौंप दिया गया.
२० मार्च २०११ को जब रॉबर्ट जॉन उर्फ़ बॉब क्रिस्टो ने बंगलौर में अपनी अन्तिम सांसें लीं तो वे एक खासी दिलचस्प और भरपूर ज़िन्दगी जी चुके थे. दर असल एक्सप्रेस में छपे उस आलेख को पढ़ने के बाद से में कबाड़ख़ाने पर उनके बारे में एक पोस्ट लगाना चाहता था पर कई कारणों से ऐसा नहीं कर सका. अब जब यह पोस्ट लग रही है तो उनको बतौर श्रद्धांजलि. ख़ैर.
जून के महीने में पेंग्विन से उनकी आत्मकथा छप कर आ रही है - फ़्लैशबैक: माइ लाइफ़ एन्ड टाइम्स इन बॉलीवुड एन्ड बेयोन्ड. मैं इन्तज़ार में हूं. अभी के लिए अलविदा बॉब.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
May his soul rest in peace.
Heartiest thanks for throwing light on his life.
दिलचस्प होता है जब किसी की जिंदगी का कोई लम्हा ही उसके पूरे जीवन की दिशा बदल जाए |
ishwar unki aatma ko shanti de. jab tak filmo me khalnayak nahi honge, nayak ka charitra ujla nahi dikhega.
कलाकार को श्रद्धांजलि।
Post a Comment