Saturday, April 30, 2011

फिर वहीँ लौट के जाना होगा




रात के दो बजे बज रहे हैं और मैं उत्तराखंड परिवहन निगम की बस में आधा सोया और आधा जागा हुआ हूँ | बस खतौली पर रूकती है चाय-पानी के लिए | बाहर उतरकर देखता हूँ, अँधेरा और अपरिचित लगने लगता है | एक छोटे ढाबे में जाकर बैठ जाता हूँ | कांच के गिलास में चाय को डूबते हुए देखता हूँ | ऐसे वक़्त में अकेलापन बेहद डरावना लगता है | ढाबे में बज रहा संगीत मेरी तन्द्रा को भंग करने की जहमत नहीं उठाता | जगजीत सिंह को सड़क पे पहली बार सुन रहा हूँ | यकीन हो चला कि ये आवाज कहीं भी सुनो दिल में जख्म कर ही देगी | गुलज़ार कहते हैं कि वो अपनी नर्म आवाज के फ़ाहों से ज़ख्म को सहलाते हैं, लेकिन उनकी बात का विश्वास नहीं होता |


'सिर्फ इक सफ़्हा पलटकर उसने|
सारी बातों की सफाई दी है |'

अतीत आदमी को हमेशा खूबसूरत लगता है, एक पलायन | दो साल- तीन साल कितने भी साल पीछे खिसका लो तुम अपनी जिंदगी, वो आज से खूबसूरत ही होगी | यही अहसास मुझे जगजीत सिंह को सुनते हुए होता है | आज बहुत सारे लोगों को सुना है, बहुतों को सुनना बाकी है | कबाडखाना, सुख़नसाज़, रेडियोवाणी, आवाज, इरफ़ान के ब्लॉग पर सुनने के बाद पता चला कि संगीत का परिदृश्य बहुत बड़ा है, बहुत जयादा | इतना कि जगजीत सिंह महज़ एक मामूली नाम हो | इतना मामूली कि लोग सुनते भी न हों | जगजीत सिंह कहीं खो गए | उनका संग्रह कंप्यूटर स्पेस की भेंट चढ़ गया | दोस्तों के बीच रुआब बनाने को नए नाम मिल गए | लेकिन आज अचानक सुनकर सभी कुछ जैसे फिर से सचेत हो गया | मुझे महसूस होता है कि दर्द को शक्ल मिलती है जब मैं जगजीत सिंह सुनता हूँ |



8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

नज़र हो तो जीवन सदा ही सुन्दर है।

प्रज्ञा पांडेय said...

'सिर्फ इक सफ़्हा पलटकर उसने|
सारी बातों की सफाई दी है |
bahut khoobsoorat

प्रज्ञा पांडेय said...

'सिर्फ इक सफ़्हा पलटकर उसने|
सारी बातों की सफाई दी है |
bahut khoobsoorat

प्रज्ञा पांडेय said...

'सिर्फ इक सफ़्हा पलटकर उसने|
सारी बातों की सफाई दी है |
bahut khoobsoorat

प्रज्ञा पांडेय said...

'सिर्फ इक सफ़्हा पलटकर उसने|
सारी बातों की सफाई दी है |
bahut khoobsoorat

pallavi trivedi said...

जगजीत सिंह...एक बड़ा ख़ास रिश्ता बन चुका है इनसे और इनकी ग़ज़लों से! भले ही संगीत जगत के विस्तार में ये एक मामूली नाम हो मगर हमारे लिए तो आज भी ये सरताज हैं! इनकी आवाज़ एक अलग ही दुनिया में ले जाती है!

Pawan Kumar said...

'सिर्फ इक सफ़्हा पलटकर उसने|
सारी बातों की सफाई दी है |'
एक आवाज़ सुनायी दी है.......
वैसे तो यह पूरा एल्बम ही सहेजने लायक है..... गुलज़ार के बोल तो कमाल के हैं ही... जगजीत सिंह ने आवाज़ भी ऐसी दे डाली की...उफ्फ्फ्फफ्फ़.

मुनीश ( munish ) said...

You know when Tokyo seemed under curfew last month, we spent our nights listening to him only, watching all the episodes of Mirza Ghalib ,flicks like Carlito's Way,The Great Escape and even Don(old)and Parvarish :) . I often rather always avoid him because he doesn't let u move then. I've never ever drunk so much beer as i did last month listening to JJS.Thnx for the post here.