महमूद दरवेश की एक और कविता -
किलेबन्दी के दौरान
यहां पहाड़ियों की ढलानों पर, गोधूलि और समय की तोपों का सामना करते
टूटी परछाइयों वाले बग़ीचे के नज़दीक
हम वही करते हैं जैसे कैदी किया करते हैं
और बेरोज़गार किया करते हैं
हम उपजाते हैं उम्मीद
***
भोर की तैयारी करता एक देश. हम कम बुद्धिमान होते जाते हैं
क्योंकि हम बहुत पास से देखते हैं विजय के क्षण को
हमारी रातों में से कोई भी रात गोलाबारी से प्रकाशित नहीं होती
हमारे दुश्मन चौकन्ने हैं और कोठरियों के अन्धेरे में
वे प्रकाशित करते हैं हमारी रात को.
***
यहां "मैं" नहीं है
यहां आदम याद करता है अपनी मिट्टी की धूल को.
***
अपनी मौत के मुहाने पर, वह कहता है:
खोने के वास्ते अब नहीं बचा मेरे पास कोई निशान:
अपनी मुक्ति के इतने नज़दीक मैं आज़ाद हूं. मेरे हाथों में है मेरा भविष्य.
जल्द ही भेद दूंगा मैं अपने जीवन को.
मैं जन्मूंगा माता-पिता के बग़ैर
और अपने नाम के लिए मैं चुनूंगा आसमानी अक्षर ...
***
भीतर आ जाओ तुम जो खड़े हो गलियारे में
अरबी कॉफ़ी पियो हमारे साथ
और तुम्हें अहसास होगा कि तुम भी मनुष्य हो हमारी तरह.
तुम जो खड़े हो हमारे गलियारों में
हमारी सुबहों से बाहर चले आओ,
हम दोबारा यकीन करने लगेंगे कि हम भी
तुन्हारी तरह मनुष्य हैं.
***
जब जहाज़ अदृश्य हो जाते हैं, सफ़ेद, सफ़ेद फ़ाख़्ते
दूर तक उड़कर स्वर्ग के गालों को पोंछ देते हैं
अपने आज़ाद पंखों के साथ वापस लाते हुए चमक को, आसमान और खेल पर
काबू पाते हुए. ऊपर, और ऊपर, सफ़ेद, सफ़ेद फ़ाख़्ते
उड़ते जाते हैं. काश, वास्तविक होता
वह आसमान (दो बमों के दरम्यान गुज़रते एक शख़्स ने मुझसे कहा)
***
सैनिकों के पीछे साइप्रस के पेड़, आकाश को ढह जाने से बचाने के लिए मीनारें
इस्पात की झाड़ी के पीछे
पेशाब करते हैं सैनिक - एक टैंक की चौकस निगाहों के सामने -
और शरद का दिन अपनी सुनहरी आवारगी को बिताता है
इतवार की प्रार्थना के बाद चौड़े हो गए किसी गिरजाघर
जितनी चौड़ी एक सड़क पर.
***
[एक हत्यारे से] अगर तुमने मारे गए व्यक्ति का चेहरा देखा होता
और उस पर अच्छे से विचार किया होता, तुम्हें गैस - चैम्बर में
अपनी मां की याद आनी थी, तुम मुक्त हो गए होते राइफ़ल के तर्क से
और तुम्हारा हृदय परिवर्तित हो जाना था: अपनी पहचान दोबारा पा लेने का
यह कोई तरीका नहीं.
***
इन्तज़ार का समय होता है किलाबन्दी
तूफ़ान के दौरान एक तिरछी सीढ़ी पर प्रतीक्षारत
***
अकेले, हम अकेले हैं नीचे तलछट तलक,
अगर यहां इन्द्रधनुष न आते मुलाकात करने
***
इस प्रस्तार के परे हमारे भाई हैं.
शानदार भाई. वे प्रेम करते हैं हमसे. वे हमें देखते हैं और रोते हैं.
तब, गुप्त रूप से वे एक दूसरे को बताते हैं:
"आह! अगर इस किलेबन्दी की घोषणा कर दी गई होती ..." वे अपना वाक्य पूरा नहीं करते:
"हमें त्यागो मत, छोड़कर न जाओ हमें."
***
हमारे नुकसान: हर दिन दो से आठ शहीद
और दस घायल
और बीस घर
और जैतून के पचास पेड़ ...
इन सब के साथ जुड़ा हुआ एक संरचनात्मक दोष
जो पहुंचेगा कविता तक, नाटक तक और अधूरे कैनवस तक.
***
एक स्त्री ने बादल से कहा: मेरे प्रेमी को ढंक दो
क्योंकि मेरे वस्त्र उसके ख़ून से भीग चुके हैं.
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अगर तुम बारिश नहीं हो, मेरे प्रेम
पेड़ हो जाओ
पेड़ हो जाओ, उपजाऊपन के नमक के साथ
अगर तुम पेड़ नहीं हो, मेरे प्यार
पत्थर हो जाओ
नमी से भरपूर पत्थर हो जाओ
अगर तुम पत्थर नहीं हो, मेरे प्यार
चन्द्रमा हो जाओ
प्रेमिका स्त्री के स्वप्न में, चन्द्रमा हो जाओ
[ऐसा बोली एक स्त्री
अपने बेटे के दफ़नाए जाते समय उससे]
***
अरे चौकीदार! क्या तुम थक नहीं गए हो
प्रतीक्षा में लेटे लेटे हमारे नमक की रोशनी की
और हमारे घाव के ग़ुलाब की आभा की
क्या तुम थके हुए नहीं हो, अरे चौकीदार!
***
इस सम्पूर्ण और नीले अनन्त का थोड़ा भी
बहुत होगा
इन समयों के बोझ को हल्का करने को
और इस स्थान के कीचड़ को साफ़ करने को.
***
अब यह आत्मा पर है कि वह अपनी ऊंचाई से उतरकर
नीचे आकर अपने रेशमी पांवों समेत
मेरे साथ साथ चले, हाथ में हाथ थामे
दो पुराने दोस्तों की तरह जो बांट कर खाते हैं एक पुरातन रोटी
और शराब का एक प्राचीन प्याला
काश हम साथ चलते रहें इस सडक पर साथ साथ
फिर हमारे दिन अलग-अलग दिशाओं में चल पड़ेंगॆ:
मैं, उस प्रकृति से परे, जो
उकड़ूं बैठना पसन्द करेगी एक ऊंची चट्टान पर
***
मेरे मलबे पर छायाएं हरी पड़ जाती हैं
और एक भेड़िया मेरी बकरी की खाल पर ऊंघ रहा है
वह मेरी ही तरह सपना देखता है, जिस तरह फ़रिश्ते सपना देखते हैं
कि जीवन यहां है ... दूर वहां नहीं
***
किलेबन्दी की स्थिति में, समय बदल जाता है अन्तराल में
अपनी अमरता में स्थिर
किलेबन्दी की स्थिति में, अन्तराल बदल जाता है समय में
जिससे छूट गए उसके बीते और आने वाले कल
***
जब भी मैं नया दिन जीना शुरू करता हूं एक शहीद मेरे गिर्द चक्कर लगाता है
और मुझसे पूछता है : तुम कहां हो? अपने दिए सारे शब्द
मुझसे वापस लेकर शब्दकोष में पहुंचा दो
और मुक्त करो सोते हुओं की गूंज की भिनभिन से
***
शहीद मुझे सिखाता है: विस्तार के परे
अमरता की कुमारियों को
मैंने देखा ही नहीं
क्योंकि मैं धरती पर गूलर के पेड़ों और चीड़ों के दरम्यान
जीवन को प्यार करता हूं,
लेकिन मैं उस तक नहीं पहुंच सकता, और फिर मैंने भी लगाया उसपर निशाना
अपने पास बची आख़िरी चीज़ के साथ: आसमान की देह का रक्त
***
शहीद ने मुझे चेताया था: उनकी बकबक पर ध्यान न देना
रोते समय, मेरे पिता पर यक़ीन करना, वह मेरे फ़ोटोग्राफ़ को देखता है
हम ने कैसे बदल लीं अपनी भूमिकाएं, मेरे बेटे, तुम मुझ से पहले कैसे आ गए
पहले मैं, मैं सबसे पहला!
***
शहीद मेरे गिर्द चक्कर लगाता है:
मेरे पास मेरा घर और अटपटा फ़र्नीचर था और वह सब बदल चुका
अपने दुख को दिलासा देने को
मैं एक हिरनी को रखता हूं अपने बिस्तर पर.
और हंसिये चांद को अपनी उंगली पर.
***
जारी रहेगी किलेबन्दी ताकि हमें यक़ीन दिलाया जा सके
कि हमें एक ऐसी ग़ुलामी चुननी होगी
जो अपनी पूरी आज़ादी में हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी.
***
विरोध करने का अर्थ हुआ कि आपके दिल का स्वास्थ्य सही है
और आपके अण्डकोषों का स्वास्थ्य और आपकी हठी बीमारी:
उम्मीद की बीमारी.
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और भोर के बचेखुचे में, मैं अपने बाहर की तरफ़ टहलने निकल जाता हूं
और रात के बचेखुचे में, मैं पदचापों की आहटें सुनता हूं अपने भीतर.
***
सलाम उसको जो कालेपन की एक सुरंग में साझा करता है मेरे साथ
रोशनी का नशे में चूर होना
और एक तितली की चमक.
***
सलाम उसको जो मेरा गिलास साझा करता है मेरे साथ
दो अन्तरालों में बंटती हुई रात की सघनता में:
सलाम मेरे प्रेत.
***
मेरे दोस्त हमेशा ही तैयारी कर रहे होते हैं मेरे वास्ते एक विदाभोज की
बांज के पेड़ों की छांह में एक सुकूनभरी कब्र
समय का एक संगमरमरी शिलालेख
और मैं हमेशा उनका इन्तज़ार करता हूं अन्तिम संस्कार के समय
तो मौत हुई किसकी है ... किसकी?
***
लेखन शून्यता को न कुतरते एक नन्हे पिल्ले जैसा है
घावों को लिखता हुआ रक्त की बूंद के एक निशान के बिना.
***
कॉफ़ी के हमारे प्याले. परिन्दे नीली छांह में
हरी पत्तियां. एक दीवार से दूसरी पर
हिरनी की तरह कुलांचें भरता सूरज
बादलों के पानी के पास आसमान का वह असीम आकार है
जो हमारे लिए बच रहा है. और टंगी हुई स्मृतियों की बाक़ी चीज़ें
बतलाती हैं कि यह सुबह शानदार और ताक़तवर है.
और यह कि हम अमरता के मेहमान हैं.
2 comments:
अच्छी हैं .
न जाने कितने आयाम समेटे यह कविता।
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