Friday, May 6, 2011

आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो


बहुत साल पहले एक फ़िल्म देखी थी "मुहाफ़िज़ (In Custody)". इस फ़िल्म में शशि कपूर ने एक बड़े उर्दू शायर नूर का रोल अदा किया था. फ़िल्म में ओम पुरी भी थे और शबाना आज़मी भी. शायर नूर के माध्यम से निर्देशक इस्माइल मर्चेन्ट ने परम्परावाद और आधुनिकता के बीच की खाई को रेखांकित करने का प्रयास किया था. नूर की शायरी दर असल फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी है इस फ़िल्म में. फ़ैज़ साहब की एक विशेष रचना मुझे बरसों से हॉन्ट करती रही है और ख़ासतौर पर इस फ़िल्म में शायर नूर के जनाज़े के वक़्त इस रचना का फ़िल्मांकन. यूट्यूब पर खोज करते हुए मुझे यह वीडियो मिल गया. देखिये



चश्म-ए-नम जान-ए-शोरीदा काफी नहीं
तोहमते-इश्क़ पोशीदा काफी नहीं
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो

दस्त-अफ्शाँ चलो, मस्तो-रक़्सां चलो
खाक-बर-सर चलो, खूं-ब-दामाँ चलो
राह तकता है सब शहर-ए-जानाँ चलो

हाकिम-ए-शहर भी, मजमए-आम भी
तीर-ए-इल्ज़ाम भी, संग-ए-दुश्ना म भी
सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी

इनका दमसाज़ अपने सिवा कौन है
शहर-ए-जानां में अब बा-सफा कौन है
दस्त-ए-क़ातिल के शायाँ रहा कौन है

रख्ते-दिल बांध लो दिलफिगारों चलो
फिर हमीं क़त्ल हो आयें यारों चलो

आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो

इसी रचना को ख़ुद फ़ैज़ साहब की आवाज़ में इसे एक दुर्लभ वीडियो में देखिये अगली पोस्ट में.