अभी शाम को लगाया था पॉल रोब्सन का गीत "ओ मा बेबी मा कर्ली हैडेड बेबी". इसे बारहा सुनते हुए मुझे हमेशा यह खयाल आता रहा कि उर्दू के दिग्गज शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने इसी थीम पर एक नज़्म लिखी थी - एक फ़िलिस्तीनी बच्चे के लिए लोरी. पेशे-ए-ख़िदमत है:
फ़िलिस्तीनी बच्चे के लिए लोरी
मत रो बच्चे
रो रो के अभी
तेरी अम्मी की आँख लगी है
मत रो बच्चे
कुछ ही पहले
तेरे अब्बा ने
अपने ग़म से रूख़सत ली है
मत रो बच्चे
तेरा भाई
अपने ख़्वाब की तितली के पीछे
दूर कहीं परदेस गया है
मत रो बच्चे
तेरी बाजी का
डोला पराए देस गया है
मत रो बच्चे
तेरे आँगन में
मुर्दा सूरज नहला के गए हैं
चन्द्रमा दफ़्ना के गए हैं
मत रो बच्चे
अम्मी, अब्बा, बाजी, भाई
चाँद और सूरज
रोएगा तो और भी तुझ को रूलवाएँगे
तू मुस्काएगा तो शायद
सारे इक दिन भेस बदल कर
तुझसे खेलने लौट आएँगे
2 comments:
बहुत सुन्दर , बहुत-बहुत आभार ....
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
मत रो बच्चे, सब आयेंगे। भावुक करती रचना। युद्ध में बालमन की पीड़ा नहीं समझ पाते हैं हम।
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