Friday, May 13, 2011

असद ज़ैदी की एक और कविता


सरलता के बारे में

सच मानिये इन्सान एक सरल मशीन है
वह अपनी साइकिल से भी सरल है
सुई-धागे से भी सरल है
मर्द सरल हैं औरतें उनसे भी सरल हैं
बच्चे ज़रा जटिल होते हैं पर वे भी आख़िर
बढ़कर पहुंचते हैं बुनियादी सरलता की ओर
सरलता की ख़्वाहिश में वे धीरे-धीरे बड़े होते हैं
जटिलता मार डालती है इन्सान को.

कल एक औरत को जिसे मैं सरल इन्सान मानता था
मार डाला एक जटिल और नफ़ीस मर्द ने
(उसकी नफ़ासत के हम सब कायल हैं)
सभी को पता है इस घटना का
ऊपर की मंज़िल से उसने उसे धक्का दिया था
अस्पताल के रास्ते में उसने दम तोड़ दिया
कुछ बोल नहीं पाई.

पुलिस कहती है मामला जटिल है जी
यह आत्महत्या भी हो सकती है
यों किसी पर सन्देह भी किया जा सकता है
मोटिव देखना पड़ेगा, क्लू मिलने चाहिए
सीधा प्रमाण कोई है नहीं
आपकी बात हम मान लें कि आत्महत्या
यह नहीं थी तो कारण बताइए
कारण भी तो कई हो सकते हैं.

मैं भी सोचता हूं कारण यहां कई हो सकते हैं
कोई धक्का दिए जाने से नहीं मरता
हां गिरने से ज़रूर मर सकता है
गिरने का सम्बन्ध गुरुत्वाकर्षण से है
उस औरत को उसके शौहर ने नहीं
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण ने मारा.

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