Friday, May 27, 2011

धरती के मौसमो, युवा रहो सदा

चेस्वाव मीवोश की एक कविता:


खिड़की

भोर के वक़्त मैंने खिड़की से बाहर निगाह डाली और सेब का एक युवा पेड़ देखा
अपनी चमक में पारदर्शी.

और जब मैंने दोबारा बाहर निगाह डाली भोर पर, फलों से लदा सेब का एक पेड़
वहां खड़ा था.

शायद कई साल बीते होंगे पर मुझे ज़रा भी याद नहीं
क्या घटा था मेरी नींद में.

सर्दियां.

कलिफ़ोर्निया की सर्दियों की तीखी गन्धें,
सलेटीपन और ग़ुलाबीपन, एक तकरीबन पारदर्शी पूरा चन्द्रमा.
मैं आग में लकड़ियां डालता हूं, मैं पीता हूं और सोचता हूं.

"इवावा में" एक समाचार बताता है "सत्तर की आयु में
कवि अलेक्सान्दर रिम्कीएविक्ज़ की मृत्यु."

वह सबसे युवा था हमारे समूह में. मैंने उसे थोड़ा संरक्षण दिया था
ठीक जिस तरह मैं दूसरों को दिया करता था उनके लघुतर मस्तिष्कों के कारण.
अलबत्ता उनमें कई सदगुण थे जिन्हें मैं छू तक नहीं सकता था.

और अब मैं यहां हूं, शताब्दी के और अपने
अन्त तक पहुंचता हुआ. अपनी शक्ति पर गर्वित
अलबत्ता दृश्य की प्रांजलता से तनिक शर्मिन्दा.

रक्त में मिले हुए अवां-गार्द.
कल्पनातीत कलाओं की राख़.
कोलाहलों का एक संकलन.

मैंने इस पर अपना फैसला तय किया. अलबत्ता जांचा अपने आप को भी.
यह सदाचारी और भले लोगों का समय नहीं रहा है.
मैं जानता हूं कैसा होता है दैत्यों को जन्म देना
और उनमें पहचानना अपने आप को.

तुम, चन्द्रमा. तुम, अलेक्सान्दर, देवदार के लठ्ठों की आग.
पानी घेर रहे हैं हमें, एक नाम की मियाद होती है बस एक पल.
यह महत्वपूर्ण नहीं कि पीढ़ियां हमें अपनी स्मृति में धारण करेंगी या नहीं.
दुनिया के अप्राप्य अर्थ की खोज में शिकारी कुत्तों के साथ
बढ़िया था वह पीछा करना.

और अब मैं तैयार हूं भागते रहने को
जब सूरज उगेगा मृत्यु की सरहदों के उस पार.
मैं अभी से देख पा रहा हूं एक दिव्य वन में पर्वतश्रृंखलाएं
जहां, हर तत्व के परे, प्रतीक्षा करता है एक नया तत्व.

तुम, मेरे बाद के वर्षों के संगीत, मुझे
बुला रहे हैं एक आवाज़ और एक रंग जो और भी ज़्यादा सम्पूर्ण.

बुझो मत, आग. मेरे सपनों में चले आओ, प्रेम.
धरती के मौसमो, युवा रहो सदा.

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

यह आग बनी रहे।

वाणी गीत said...

बहुत खूबसूरत हैं धरती के ये मौसम !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत प्रस्तुति