ज़्बिग्नियू हेर्बेर्त की कविता
जब ईश्वर ने संसार बनाया
उसने शिकन डाली अपनी भौंहों पर
हिसाब लगाया हिसाब लगाया हिसाब लगाया
यही वजह है कि दुनिया निर्दोष है
और रहने लायक नहीं
इसके बजाय चित्रकार का संसार
अच्छा होता है
ग़लतियों से भरा हुआ
आंख जाती है
एक रंग से दूसरे तक
एक फल से दूसरे तक
बुदबुदाती है आंख
आंख मुस्कराती है
याद रखती है
आंख कहती है इसे सहा जा सकता है
अगर इसके भीतर
जाया जा सकता तो
जहां चित्रकार था
बिना पंखों के
खटारा चप्पलों में
"वर्जिल" के बिना
जेब में धरे बिल्ली
एक दयालु फ़न्तासी
और एक हाथ
जो बिना जाने
सही बनाता है दुनिया को.
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