Tuesday, May 10, 2011

विश्वविद्यालय : मार्सिन स्विएतलिकी की कविता

विश्वविद्यालय

ऐसी कोई चीज़ नहीं जिस पर शर्मसार हुआ जाए - लड़के ने
दुछत्ती में सीखी चीज़ें - किसी भी और क़िस्म की
शिक्षा अनावश्यक है - वह उछला कर बाहर आया रात के पहले पहर
अपने बिस्तर से - सीढ़ियां चढ़कर - उसने बन्द कर दिया वार्डरोब का प्रवेशद्वार - निश्चित कदमों
के साथ वह दुछत्ती के बीचोबीच पहुंचा - मकड़ियां अलबत्ता तैनात, सीधी खड़ी थीं
अपनी सन्तरी-चौकियों पर.
लड़के ने अपने कपड़े उतारे, खड़ा रहा, तल्लीन.

छत के छेद से, आसमान बोल रहा था,
आसमान से, अलबत्ता. परिन्दे बोल रहे थे,
चिड़ियों के साथ बोल रहे थे
एक बहरे-गूंगे ईश्वर के हाथ. महान अच्छापन
उपजता है गूंगे-बहरेपन से.

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

आसमान के बोल बहुधा सुनायी पड़ जाते हैं।

अजेय said...

अपन इसी विश्वविद्यालय से पी एच डी करेंगे !