Wednesday, July 13, 2011

क्रिस तुसा की कविता


१९७२ में जन्मे क्रिस तुसा न्यू ऑरलियन्स के रहने वाले हैं और समकालीन अमरीकी कवियों में खासे प्रतिभाशाली माने जाते हैं. अमरीका और यूरोप की तमाम साहित्यिक पत्रिकाओं में छपने के बाद उनका पहला संग्रह "डर्टी लिटल एन्जेल्स" हाल ही में आया है.

लूसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी पढ़ाने के अलावा वे पोएट्री साउथ ईस्ट के मैनेजिंग डाइरेक्टर भी हैं.

उनकी एक कविता पेश है -

मार्डी ग्रास* के दौरान मेरी मां का किन्डरगार्टन पोर्ट्रेट

दर असल वह दयनीय लग रही है, वाकई,
काली हवा का सहारा लिए
उसके बांए हाथ की तीन ऊंगलियां
थामे हुए एक पीला पर्स
उसकी दांई बांह सिर के ऊपर उठी हुई
जैसे वह बचा रही हो
खुद पर गिरते चांदी के सितारों की
बारिश से

एक दरार जैसा उसका मुंह
उगा हुआ उसकी नाक के नीचे
छेदों जैसे दो
उसके गालों पर गड्ढे. उसकी ठोड़ी से लटक रहा
एक गुलाबी कान.

इस समय इसे देखना, हां स्पष्ट है.
लेकिन सम्भवतः तब कौन जानता था
उसके चेहरे की छाया में मौजूद
अर्थ के उन घने रंगों को,
उसकी गरदन के गिर्द तैरती मोतियों की माला
की खामोश प्रासंगिकता,
उसके ऊपर उड़तीं नारंगी चिड़ियां
प्रश्नचिन्हों जैसीं?

या यह कि बीस साल बाद
इस सब का कोई मतलब होगा -
जिस तरह आसमान की तरफ़ देखती हैं उसकी आंखें,
जिस तरह मेरे पिता खड़े हैं उसके पीछे
भीड़ में, हवा में बांहें हिलाते,
जैसे वे डूब रहे हों धीरे धीरे
चेहरों के काले समन्दर में.

(मार्डी ग्रास: एक ईसाई परम्परा के अनुसार जनवरी - फ़रवरी के बीच एपीफ़ेनी और ऐश वैडनेसडे के दौरान पड़ने वाला समय जब खासतौर पर युवा और बच्चे खूब उत्सव मनाते हैं.)

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