Monday, July 18, 2011

रसूल हम्ज़ातोव के दाग़िस्तान पर रिपीट पोस्ट - १


पढ़ने लिखने वालों को रसूल की सलाहें

रूस के उत्तरी काकेशिया में स्थित है एक छोटा सा मुल्क दाग़िस्तान. क़रीब पच्चीस लाख की आबादी वाले इस मुल्क की आधिकारिक भाषा रूसी है अलबत्ता इस में बसने वाली अवार लोगों की भाषा ने दुनिया को रसूल हम्ज़ातोव जैसा महाकवि दिया. रसूल ने अवार भाषा में ढेरों कविताएं रचीं. बाद के दिनों में उन्होंने 'मेरा दाग़िस्तान' नाम से एक शानदार संस्मरण लिखा जो शिल्प और भाषाई कौशल के हिसाब से एक अद्वितीय रचना है. यह किताब इतनी लोकप्रिय हुई कि पाठकों की मांग पर रसूल को इस का दूसरा भाग लिखना पड़ा. मेरा अपना मानना है कि इस किताब को हर समझदार इन्सान के घर में होना चाहिए और परिवार के लोगों के साथ इस का वाचन किया जाना चाहिए. किताब का एक हिस्सा पेश करने से पहले मैं 'मेरा दाग़िस्तान' की शुरुआत में आने वाली अवार भाषा के महाकवि अबूतालिब की एक पसंदीदा उक्ति आपको सुनाता हूं : "अगर तुम अतीत पर पिस्तौल से गोली चलाओगे, तो भविष्य तुम पर तोप से गोले बरसाएगा।"


नोटबुक से

हमारे साहित्य-संस्थान में ऐसे हुआ था। पहले वर्ष की पढ़ाई के समय बीस कवि थे, चार गद्यकार और एक नाटककार। दूसरे वर्ष में - पन्द्र्ह कवि, आठ गद्यकार, एक नाटककार और एक आलोचक। तीसरे वर्ष में - आठ कवि, दस गद्यकार, एक नाटककार और छ: आलोचक। पांचवे वर्ष के अंत में - एक कवि, एक गद्यकार, एक नाटककार और शेष सभी आलोचक।ख़ैर यह तो अतिशयोक्ति है, चुटकुला है। मगर यह तो सच है कि बहुत-से कविता से अपना साहित्यिक जीवन आरंभ करते हैं, उस के बाद कहानी-उपन्यास, फिर नाट्क और उस के बाद लेख लिखने लगते हैं। हां, आजकल तो फ़िल्म सिनेरियो लिखने का ज़्यादा फ़ैशन है।

कुछ बाद्शाहों और शाहों ने अपनी मलिकाओं और बेगमों को इसलिए छोड़ दिया था कि उन के सन्तान नहीं हुई थी। मगर कुछ बीवियां बदलने के बाद उन्हें इस बात का यकीन हो गया कि इस के लिए वे बिल्कुल दोषी नहीं थीं; दूसरी तरफ़ कोई भी किसान ज़िन्दगी भर एक ही बीवी के साथ रहता है और उसी से एक दर्ज़न बच्चे पैदा कर लेता है।

मैं तो यह मानता हूं कि शराब पियो, मगर रोटी से मुंह न मोड़ो। गीत गाओ, मगर क़िस्से भी सुनो। कविताएं रचो, मगर सीधी सादी कहानी को दूर न भगाओ।

गद्य

एक वह भी ज़माना था, जब मैं पालने में लेटा रहता था और मेरी मां लोरी गाया करती थी; उन्हें सिर्फ़ एक ही लोरी आती थी। हमारे पिता जी बेशक जाने-माने कवि थे, अपने बेटों के लिए उन्होंने एक भी गीत नहीं रचा। वे हमें बड़े शौक से तरह-तरह के क़िस्से-कहानियां और घटनाएं सुनाते थे। यह उनका गद्य था।

पिताजी को अपनी कविताओं की चर्चा करना पसन्द नहीं था। मेरे ख़्याल में वे काव्य-रचना को गम्भीर काम नहीं मानते थे। उनके संजीदा काम थे - ज़मीन जोतना, खलिहान को ठीक-ठाक करना, गाय और घोड़े की देखभाल करना, छत पर से बर्फ़ साफ़ करना और बाद को गांव, यहां तक कि हलक़े के मामलों में सरगर्म हिस्सा लेना।

कविता रचने के बाद मेरे पिता इस बात की ख़ास चिन्ता नहीं करते थे कि वह कहां छपती है। केन्द्रीय समाचारपत्र हो या गांव के पायनियरों का दीवारी समाचारपत्र। इस बात की तरफ़ मेरा ध्यान गया था कि दीवारी समाचारपत्र में स्थान दिए जाने पर उन्हें ज़्यादा ख़ुशी होती थी।

वे अक्सर उन शब्दों को याद करते थे, जो प्यार के विख्यात गायक, कवि महमूद को उनके पिता अनासील मुहम्मद ने कहे थे। प्यार और प्यार के गीतों से बेहाल, भूखे और ज़र्द चेहरे वाले निखट्टू बेटे जैसे कवि महमूद ने जब घर आकर रोटी मांगी तो उनके पिता ने बड़े इतमीनान से जवाब दिया:

"कविता खाओ और प्यार पियो। मैं तुम्हारे लिये हल जोतता जोतता थक गया हूं!"

इसमें कोई शक नहीं कि गीत के बिना तो परिन्दा भी नहीं रह सकता। मगर परिन्दे का मुख्य काम तो है - घोंसला बनाना, चुग्गा हासिल करना, अपने बच्चों का पेट भरना।

पिताजी के लिये उनकी कविताएं परिन्दे के तराने के समान ही थीं - सुन्दर, सुखद, किन्तु अनिवार्य नहीं। वे उन्हें सुबह के वक़्त कहे जाने वाले "शुभ प्रभात" और रात को बिस्तर पर जाते वक़्त कहे जाने वाले "शुभ रात्रि" शब्दों, पर्व की बधाई या दु:ख के शोक-सन्देस की तरह ही मानते थे।

ऐसी धारणा है कि कवि इस दुनिया से कुछ निराले होते हैं - हर कोई अपने ही ढंग से। मगर पिताजी अपने स्वभाव और मानसिक संरचना की हिसाब से साधारण पहाड़ी आदमी थे। सबसे अधिक तो उन्हें मंडली में बैठकर, जब लोग एक-दूसरे को टोकते नहीं, मज़े से बातचीत करना, तरह-तरह के क़िस्से कहानियां और घटनाएं सुनाना यानी गद्य ही अधिक पसन्द था।

पिताजी ने विख्यात कवि महमूद को अपनी कविताएं दिखाईं। कवि को पिताजी की कविताएं देखकर हैरानी हुई और बोले कि वे उनकी समझ में नहीं आतीं और कुल मिला कर वे यह समझ ही नहीं पाते कि गऊ, ट्रैक्टर, कुत्तों और ख़ूंजह गांव की पगडंडी के बारे में कैसी कविताएं रची जा सकती हैं।

"तो किस बारे में कविताएं रची जाएं?" पिताजी ने नम्रता से पूछा।

"प्यार, केवल प्यार के बारे में! प्यार का महल बनाना चाहिए।"

- रसूल हम्ज़ातोव (१९२३-२००३)

(बाएं तस्वीर में रसूल अपनी पत्नी के साथ)

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