Sunday, July 3, 2011

डी. एल. रोड पर एलेक्जेंडर रहते हैं

राजेश सकलानी के संग्रह "पुश्तों का बयान" से प्रस्तुत है एक कविता:


डी. एल. रोड पर एलेक्जेंडर रहते हैं

हर वर्ष नए उत्पाद की तरह है
जिसका बीते समय से कोई आंतरिक और
आत्मीय संबंध नहीं है
राजपुर रोड पर नए-नए शोरूम और चमाचम मोटरों
के बीच होते जाइए बेग़ाने

बमुश्किल आधा कोस पर है संकरी डी. एल. रोड
दुकानों और घरों से पटी हुई
आधी रात तक चहल-पहल बिल्कुल घरेलू क़िस्म की
मोहल्लेबाज़ी भी जम कर होती है सड़क पर
दोस्तों के मामले भी निपटते हैं यहीं बीचोबीच
गुज़रने वाले ख़ुद अपनी राह निकालें दाएं-बाएं
प्यार-व्यार के छींटे भी शालीनता के साथ
चुपचाप

पास के कॉलेजों से रहती है यहां हवा तृप्त
नालापानी रोड कटने से जो त्रिकोण बनता है
वहीं स्कूटर रिपेयर वाली दुकान के ठीक सामने
तबेले के ऊपर वाले घर में एलेक्जेंडर रहते हैं
रफ़ी, किशोर, मन्नाडे, महेन्द्र कपूर, तलत महमूद से लेकर
उदित नारायण, यहां तक कि लता, आशा के स्वर को भी
पुनः सृजित करने वाले गायक जिनके बिना
देहरादून के पिछले चालीस सालों की यादों का
बयान पूरा नहीं होता

गाढ़े रंग और भारी बदन के एलेक्जेंडर
हमेशा उत्साह से भरे हुए, पहनावे में टिपटॉप
घूम खाती हुई ज़ुल्फ़ें
लौटते हैं अक्सर देर रात गए कार्यक्रमों से
रास्ते भर हाय-हैलो करते

कोई एलबम नहीं निकला यह कोई बात नहीं
समय बदल गया है तेज़ी से इसका भी नहीं कोई रोना
कई सी.डी., डी.वी.डी. नए गायकों के आकर
पुराने पड़ गए
उनके गानों में वही आदमी है सुख-दुःख का संगी
साथ रहने का हौसला बराबर देता हुआ
न हो वे चतुर चालाक पर यह भी नहीं
कि रहें भौंचक पिलपिले
समझें कि पीछे छूट गए आज की तारीख़ में

यह मिजाज़ डी.एल. रोड का है, वही मैक्डोनाल्ड
एडिडास, पिज़्ज़ा हट वाली राजपुर रोड के समानान्तर
बरसाती रिस्पना नदी से लगे पूरे इलाक़ों में
जहां बढ़ई, मोची, राज मिस्त्री, सफ़ाईकर्मी
मैकेनिक, रंगसाज़ जैसे हुनरमंद शहर में रोज़
कुछ जोड़कर लौटते हैं तंग गलियों में
शाम होते यहां गाढ़े रंग का चमकदार फूल
खिलता है

रात-बिरात कोई अजनबी मुश्किल में फंस जाय यहां
यही होगा कि विक्रम, जगदीश या पवन ख़राब स्कूटर को
रखवा दें कहीं सुरक्षित जग
एलेक्जेंडर अपनी मोटरसाइकिल लेकर आए
कहें कि छोड़ देता हूं आपके घर
आधी रात भला आप क्या करेंगे
ख़राब मौसम की चिन्ता न करें
दूरी की क्या बात करते हैं
पूरा अपना ही है देहरादून.

(पेन्टिंग: बैन्डमास्टर्स, चित्रकार - कृष्ण खन्ना)

2 comments:

विजय गौड़ said...

rajesh saklani ke sangrah se kuchh or kavitain or any bhi yahan dekha ja sakta hai -
http://likhoyahanvahan.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80

Sunitamohan said...

behtreen rachna hai, jisme ek shaksh jiske hunar ke hum bhi kadrdaan hain, ki badi khubsurti se charitra ki tasveer khinchi hai.vakai, Alexandar Dehradun ki ek bahumulya sampatti hain....!