निज़ार क़ब्बानी की ही एक और नन्ही कविता
मैंने दुनिया के बच्चों को सिखाया
मैंने दुनिया के बच्चों को सिखाया
तुम्हारा नाम लिखना
और उनके होंठ शहतूत में बदल गए
मैंने हवा से कहा तुम्हारे
काले केश काढ़ने को
और उसने माफ़ी मांग ली, उसने कहा कि समय बहुत कम था
और तुम्हारे केश इतने लम्बे
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समय बहुत कम था और तुम्हारे केश बहुत लम्बे। बढि़या पंक्ति। सुन्दर कविता।
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