कल आपने शहीद पत्रकार हेम चन्द्र पांडे के छोटे भाई की स्मृतियां पढ़ी थीं. आज इसी जांबाज़ पत्रकार की आदरणीय माता जी श्रीमती रमा पांडे झूठतन्त्र द्वारा छीन लिए गए अपने बेटे को याद कर रही हैं -
गणतंत्र अपने बच्चों को मारने की इजाजत नहीं देता. सुप्रीम कोर्ट का यह बयान मेरे लिए उम्मीद की एक किरण की तरह है. मैं अपने बेटे के हत्यारों को फांसी के फंदे पर लटके हुए देखना चाहती हूं. यह बयान उन लोगों के लिए नई बात होगी जो अब तक केवल एक ही पक्ष सुन रहे थे. यह उन लोगों के लिए भी नई बात हो सकती है जो पुलिस की बताई कहानी लिखते और छापते हैं. कोर्ट के इस बयान के बाद मेरे बेटे की शहादत के मायने मजबूत होते होते हैं.
मुझे यकीन था कि मेरा बेटा हथियार नहीं उठा सकता. पैदा होने के बाद से लेकर फर्जी मुठभेड़ में उसके मारे जाने के बीच, मुझे कोई ऐसा वाक़या याद नहीं आता जिसमें वह कभी हिंसक दिखा हो. बेहद जिम्मेदार था मेरा बेटा. सामान्य तौर पर हर बच्चे पर उसके माता-पिता का प्रभाव पड़ता है लेकिन मेरे बेटे ने हमें प्रभावित किया था. कुछ बातों में मेरा जरूर उससे मतभेद था इसके बावजूद वह अपना धर्म पूरी तरह निभाता था. समाज से जुड़े रहने की उसकी चाहत ही थी कि वह घोर नास्तिक होते हुए भी वो लोगों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करता था.
बचपन से ही उसे कई काम एक साथ करने की उसे आदत थी. कक्षा नौ में रहा होगा जब हमारा परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. तब हम रामपुर में रहते थे. उसने अपने लिए लॉटरी के टिकटों पर मोहर लगाने का काम खोज लिया. एक साबुन फैक्टरी में भी उसने काम किया. उसकी योग्यता को देखर फैक्टरी स्वामी उसे गोद लेने की बात कहने लगे थे. आज सोचती हूं कि मैंने इनकार न किया होता तो शायद वो जीवित होता.
बाद में हम देवलथल चले आए. यहां भी संसाधनों का अभाव था. पर पहाड़ तो पहाड़ है जीवन किसी तरह चलता रहा. इन बदलावों और अभावों को मैं तो जी रही थी, लेकिन वह इन अभावों के कारण खोजने लगा था. वह ग्यारहवीं या बारहवीं में पढ़ता होगा तभी से उसने कोर्स से बाहर की किताबें पढ़नी शुरू कर दी. इसी बीच उसने पूजा-पाठ करना भी छोड़ दिया. कुछ दिन हमें सबकुछ अटपटा लगा लेकिन धीरे-धीरे हमें भी इसकी आदत हो गई. बाद में कई बार मुझे लगता कि मेरा बेटा आज के युवाओं से बिलकुल अलग है. जिस दौर में युवाओं को अपने करियर की चिंता सताती है उस दौर में वह सताये हुए गरीब लोगों की चिंता करने लगा था.
मुझे अच्छी तरह याद है देवलथल में अवैध खड़िया खनन के खिलाफ पहली बार उसने आवाज उठाई थी. उसके पापा बहुत नाराज हुए थे लेकिन वह नहीं डिगा.
घर की परिस्थितियों की चर्चा करते हुए मैंने कई बार उसे नौकरी के लिए कहा लेकिन उसने नौकरी के लिए कभी आवेदन नहीं किया. हां, इसके बाद उसने घर से पैसा लेना बंद कर दिया. वह पिथौरागढ़ के छात्र आंदोलनों और जन आंदोलनों का भागीदार था. पहली बार इसका पता मुझे तब चला जब हमने अखबार में उसका फोटो देखा. इस बार भी उसके पापा बहुत नाराज़ हुए थे. लेकिन मैं इस बार भी खुश थी. उसकी लड़ाई लगातार तेज हो रही थी और हमारा जीवन उसी मंथर गति से चल रहा था. अब वह बड़े-बड़े सेमिनारों में जाने लगा था. कई लोगों ने मुझसे कहा कि तुम्हारा बेटा बहुत अच्छा भाषण देता है. सुनने का मौका ही नहीं मिला और वह खामोश हो गया.
कॉलेज खत्म होने के बाद भी वह अपनी पढ़ाई में मस्त रहा. अखबारों में उसके लेख छपने लगे थे कहा करता था मम्मी एक शब्द नहीं काटा है. वह क्या लिखता था मेरी समझ में कभी नहीं आया, इसके बावजूद मैं उसके सभी लेख पढ़ती थी. उसके लेखों में किसानों, बेरोजगारों और बढ़ती महंगाई की चिंता को मैंने जरूर महसूस किया था. ऐसे युवा को क्यों गोली मार दी गई? इसका जवाब मिल पाएगा क्या कभी? जवाब मिल भी जाए तो क्या हेम जैसे युवाओं की क्षतिपूर्ति कर सकती है पुलिस? अकेला हेम नहीं उससे पहले भी कई लोग हैं जिनकी मां के पास अपनी बात लिखने के साधन तक नहीं. मैं कहीं तो भाग्यशाली हूं जो अपनी बात कह पा रही हूं. इसलिए जरूरी है कि यह तय किया जाए कि मेरे बाद किसी मां को यह दर्द न मिले. वरना फिर किसी बेगुनाह को गरीबों, दलितों और पिछड़ों की बात करने पर गोली मार दी जाएगी.
(विचारधारा वाला पत्रकार - हेम चन्द्र पांडे से. पुस्तक प्राप्त करने हेतु इस पते पर मेल करें - bhupens@gmail.com अथवा भूपेन से इस नम्बर पर बात करें -.+91-9999169886 पुस्तक की कीमत है १५० रुपए)
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