Monday, August 29, 2011

एक युवा कवि को पत्र - 5 - रेनर मारिया रिल्के

(पत्र १, पत्र २, पत्र ३, पत्र-४ से आगे)


रोम
२९ अक्टूबर १९०३

प्रिय मान्यवर,

आपका २९ अगस्त का पत्र मुझे फ़्लोरेन्स में मिल गया था और जवाब लिखने में मुझे ये दो लम्बे महीने लग गए हैं. कृपया मुझे इस लेटलतीफ़ी के लिए माफ़ करें लेकिन मुझे यात्राएं करते समय पत्र लिखना अच्छा नहीं लगता क्योंकि उस के लिए मुझे सबसे ज़रूरी उपकरणों के अलावा भी कुछ चाहिए होता है: थोड़ी सी ख़ामोशी और अकेलापन और बहुत अपरिचित जगह नहीं.

हम कोई छः हफ़्ते पहले रोम पहुंचे, ऐसे समय जब वह ख़ाली, गर्म और प्रत्यक्षतः बुखार में पड़ा हुआ रोम था, और इस परिस्थिति के साथ साथ रहने की जगह खोजने की हमारी कोशिशों ने हमारे आसपास की बेचैनी को इतना बढ़ा दिया जैसे कि वह कभी ख़त्म ही नहीं होगी, और अपरिचितता हम पर बेघर होने के भार की तरह लद गई. इसके अलावा शुरुआती दिनों में रोम (अगर आप उस से परिचित न हुए हों तो) उदासी से आपका दम घोंटा करता है: अपने अन्धेरे संग्रहालयों सरीखे बेजान वातावरण के कारण जिसे यह अपनी सांस में छोड़ता है, इसके बीते समयों की प्रचुरताओं के कारण जिन्हें सामने लाकर सश्रम खड़ा किया जाता है (इन बीते समयों पर एक नन्हा सा वर्तमान ठहरा रहता है), उस भयंकर अति-मूल्यांकन के कारण जिसे विद्वानों और भाषाशास्त्रियों ने बचाकर रखा हुआ है और जिसकी नकल इटली में आए सैलानी किया करते हैं, इन सारी विकृत और क्षयग्रस्त चीज़ों के कारण जो अन्ततः एक दूसरे समय के इत्तफ़ाक़न बच रहे अवशेषों के अलावा कुछ नहीं वे किसी दूसरे जीवन की चीज़ें हैं जो हमारी नहीं होतीं और नहीं होनी चाहिए. आख़िरकार, हफ़्तों के रोजमर्रा प्रतिरोध के बाद आप अपने को थोड़ा बहुत प्रकृतिस्थ पाते हैं अलबत्ता अभी भी कुछ सशंकित, और आप ख़ुद से कहते हैं: नहीं, यहां दूसरी जगहों से अधिक सुन्दरता नहीं है, और ये तमाम चीज़ें जिन्हें देखकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग आश्चर्य करते रहे हैं, जिनकी मरम्मत और रखरखाव कारीगरों ने अपने हाथों से की है, इनका कोई अर्थ नहीं, ये कुछ नहीं हैं, इनके पास न कोई हृदय है न कोई मूल्य; लेकिन यहां इतनी सारी सुन्दरता है क्योंकि हर जगह इतनी सारी सुन्दरता है. जीवन से भरे पानी प्राचीन नहरों से होकर महान नगर में आते हैं और पत्थर के बने जलकुण्डों में तमाम चौराहों पर और फैले हुए विशाल और विस्तीर्ण तालाबों में नृत्य करते हैं, वे दिन के वक़्त कलरव करते रहते हैं और रात को अपनी आवाज़ें बढ़ा देते हैं, रात जो यहां असीम होती है और तारोंभरी और हवाओं से मुलायम. और यहां बाग़ीचे हैं, अविस्मरणीय रास्ते और माइकेलएन्जेलो के डिज़ाइन किए हुए ज़ीने, नीचे की तरफ़ फिसलते पानियों के पैटर्न पर बनाए गए ज़ीने जो उतरते हुए फैलती हुई सीढ़ियों को जन्म देते जाते हैं जैसे कि वह किसी लहर से निकली लहरें हो. ऐसी छवियों से आप अपने आप को सम्हालते हैं, अपने को वापस प्राप्त करते हुए उस सख़्त बहुतायत से जो यहां-वहां बोलती-बड़बड़ करती रहती है (और किस कदर बातूनी), और हौले हौले आप उन कुछ चीज़ों को पहचानना शुरू करते हैं जिनके भीतर कोई अनन्त वस्तु बची रह गई है और जिसे आप प्रेम कर सकते हैं और कोई एकाकी चीज़ जिसमें आप नम्रतापूर्वक हिस्सा ले सकते हैं.

मैं अब भी शहर में रह रहा हूं, कैपिटॉल पर, यह रोमन कला से आई सुन्दरतम अश्वारोही मूर्ति से बहुत दूर नहीं है - मार्कस ऑरेलियस की मूर्ति; लेकिन कुछ ही हफ़्तों में मैं एक शान्त, सादगीभरे कमरे में चला जाऊंगा - एक पुराने समरहाउस में जो शहर, उसके शोर और घटनाओं से छुपा हुआ, एक बड़े से पार्क में कहीं खोया सा हुआ है. वहां मैं पूरी सर्दियों भर रहूंगा और महान शान्ति का आनन्द उठाऊंगा, जिससे मुझे कार्य से भरे कुछ प्रसन्न क्षणों की उम्मीद है ...

वहां से, जहां मैं ज़्यादा अपने घर जैसा महसूस करूंगा, मैं आपको एक लम्बा पत्र लिखूंगा, जिसमें मैं उस बारे में ज़्यादा कहूंगा जिस बाबत आपने लिखा है. आज मैं आप को यह बताना चाहता हूं (और शायद ऐसा पहले न कह पाना मेरी ग़लती रही है) कि जो किताब आपने मुझे भेजी थी (आपने अपने पत्र में ज़िक्र किया था कि उसमें आपका भी कुछ काम था) अब तक नहीं पहुंची है. क्या वह आपको सम्भवतः वोर्पस्वीड से वापस भेज दी गई है? (वे वहां से विदेशों को पार्सल फ़ॉरवर्ड नहीं करते). यही सबसे आशावान सम्भावना है, और मुझे इस बाबत निश्चित जानकर अच्छा लगेगा. मुझे आशा है बन्डल खोया नहीं है - दुर्भाग्यवश जैसी इतालवी डाक-व्यवस्था है, वह कोई असामान्य बात नहीं होगी.

मुझे उस पुस्तक का अपने पास होना भला लगता (जैसा कि आप की तरफ़ से मुझ तक आई हर चीज़ के साथ होता है); और इस दरम्यान जो भी कविताएं उपजी होंगी तो मैं हमेशा (अगर आप उन्हें मुझे सौंपेंगे तो) उन्हें बार-बार पढ़ूंगा और जितना अच्छी तरह से उन्हें महसूस कर सकूंगा करूंगा. शुभकामनाएं.

आपका

रेनर मारिया रिल्के

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