Monday, August 29, 2011

यह फूल एक तीसरी ही लड़की का नाम था


काली लड़की

चन्द्रकान्त देवताले

वह शीशम के सबसे सुन्दर फूल की तरह
मेरी आँख के भीतर खुप रही थी
अपने बालों में पीले फूलों को खोंसकर
वह शब्दों के लिए ग़ैरहाजिर
पर आँखों के लिए मौज़ूद थी

मैं बोलता जा रहा था
पर शब्द जहाँ से आ रहे थे
वहाँ एक दूसरी ही लड़की एक नदी थी

और यह सामने बैठी हुई लड़की
उस नदी से लेकर
एक बैंजनी फूल मुझे दे रही थी
और यह फूल
एक तीसरी ही लड़की का नाम था

और यह सब करते हुए वह
एक-दो-तीन नहीं
हज़ारों दिनों को तहस-नहस कर रही थी

1 comment:

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत...क्या कहूँ ? मौन कर दिया आपकी रचना ने...

नीरज