Saturday, September 24, 2011

जब चषक में ढाल दी जाती है शराब




निज़ार क़ब्बानी  की पाँच कवितायें
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)


1 - कप और गुलाब

कॉफीहाउस में गया
यह सोचकर
कि भुला दूँगा अपना प्यार
और दफ़्न कर दूँगा सारे दु:ख।

किन्तु
तुम उभर आईं
मेरी कॉफी कप के तल से
एक सफेद गुलाब बनकर।

2 -वनवास

जब भी तुम
होती हो यात्राओं पर
तुम्हारी खुशबू प्रश्न करती है
तुम्हारे बारे में
एक शुशु की तरह जोहती है
माँ के लौटने की बाट।

तनिक सोचो
यहाँ तक कि  खुशबू को पता है
कि किसे कहते हैं निर्वासन
और कैसा होता है वनवास।

3 -ज्यामिति

मेरे जुनून की चौहद्दियों के बाहर
नहीं है
तुम्हारा कोई वास्तविक समय।

मैं हूँ तुम्हारा समय
मेरी बाँहों के दिशासूचक यंत्र के बाहर
नहीं हैं तुम्हारे स्पष्ट आयाम।

मैं हूँ तुम्हारे सकल आयाम
तुम्हारे कोण
तुम्हारे वृत्त
तुम्हारी ढलानें
और तुम्हारी सरल रेखायें।

4 - बालपन के साथ

आज की रात
मैं  नहीं रहूँगा तुम्हारे साथ
मैं नहीं रहूँगा किसी भी स्थान पर।

मैं ले आया हूँ बैंगनी पाल वाले जलयान
और ऐसी रेलगाड़ियाँ
जिनका ठहराव
केवल तुम्हारी आँखों के स्टेशनों पर नियत है।

मैंने तैयार किए हैं
कागज के जहाज
जो उड़ान भरते हैं प्यार की ऊर्जा से।

मैं ले आया हूँ
कागज और मोमिया रंग
और तय किया है
कि व्यतीत करूँगा संपूर्ण रात्रि
अपने बालपन के साथ।

5 -आशंका

मैं डरता हूँ
तुम्हारे सामने
अपने प्रेम का इजहार करने से।

सुना है
जब चषक में ढाल दी जाती है शराब
तो उड़ जाती है उसकी सुवास।