Friday, September 2, 2011

एक मुकम्मल नदी जो हम चूक गए


दो कविताएं कुछ दिन बह कर गुम हो गई एक नदी के लिए


एक नदी जिसे हम पीना चाहते हैं

हमें चाहिए
एक नदी
उस मे कूद जाने लिए

एक नदी
उस में तैरने के लिए

एक नदी
उस मे डूब जाने लिए !

एक नदी हम सोचें
अपने आकाश
और उस की सूखती हवा के लिए

एक नदी हम खोजें
अपनी धरती
और उस की तपती मिट्टी के लिए

एक नदी हम पोसें
अपनी ज़िन्दगी
और उस मे गायब हरियाली के लिए


हमे चाहिए
एक नदी
एक मुश्त
अभी
इस चिलचिलाते समय मे

कि पीते रहें उसे किश्तों में
ता उम्र
आहिस्ता , आहिस्ता !

जुलाई/ 4, 2008




हम चूक गए कितनी ही नदियाँ

एक नदी हमारे भीतर रहती है
जिस की कोई आवाज़ नही
हमारे अंत: करण को धो डालती है
बिना हमें बताए

एक नदी आस पास बहती है
जिस की कोई शक्ल नहीं
बेरंग
खिलखिलाती
बिना हमारे सपनो को छुए ही
संभव कर देती उन्हे

एक नदी यहाँ से शुरू होती
जिस की कोई गहराई नहीं
बेखटके उतर जाते हम
बिना उसे बताए और छुए
जब कभी

कुछ नदियाँ पहाड़ लाँघती
पठार फाँदती
यहाँ तक आतीं
चुपके से डूब जातीं हम में
और हमें पता भी न चलता ........
कितनी ही नदियाँ
कितनी - कितनी तरह हमसे
कितनी – कितनी बार जुड़तीं रहीं
और हमारा अथाह खारापन
चूक गया हर बार
उन सब की मीठी ताज़गी

हर बार चूक गए हम
एक मुकम्मल नदी !

जून/25,2008

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

नदी की व्यथा पर हृदयोद्गारित प्रस्तुतियाँ।

vishesh said...

bahut sundar kavitaian hain,nadi li halat ka aadmi dwara mukammal bayan,yahi halat aadmi ki bhi hai,dono ko ake dusre ki jaroorat hai,bdhai...

Vandana Ramasingh said...

एक नदी हम पोसें
अपनी ज़िन्दगी
और उस मे गायब हरियाली के लिए

कितनी – कितनी बार जुड़तीं रहीं
और हमारा अथाह खारापन
चुक गया हर बार
उन सब की मीठी ताज़गी

दोनों रचनाएं बहुत ही बढ़िया

vijay kumar sappatti said...

बहुत देर से आपके इस ब्लॉग पर हूँ , बहुत सी अच्छी बाते पढ़ी , समझ नहीं आया कि किस पर टिपण्णी करूँ और किस पर नहीं .इन दोनों कवितायो को पढ़ा तो मन भर आया.. हमारी तरह नदियों का भी मन होता है न !!

बधाई !!
आभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html