Wednesday, October 19, 2011

भोंदू जी की सर्दियाँ

भोंदू जी की सर्दियाँ
(वीरेन डंगवाल की कविता )

आ गई हरी सब्जियों की बहार
पराठे मूली के, मिर्च, नीबू का अचार

मुलायम आवाज में गाने लगे मुंह-अंधेरे
कउए सुबह का राग शीतल कठोर
धूल और ओस से लथपथ बेर के बूढ़े पेड़ में
पक रहे चुपके से विचित्र सुगन्‍धवाले फल
फेरे लगाने लगी गिलहरी चोर

बहुत दिनों बाद कटा कोहरा खिला घाम
कलियुग में ऐसे ही आते हैं सियाराम

नया सूट पहन बाबू साहब ने
नई घरवाली को दिखलाया बांका ठाठ
अचार से परांठे खाये सर पर हेल्‍मेट पहना
फिर दहेज की मोटर साइकिल पर इतराते
ठिठुरते हुए दफ्तर को चले

भोंदू की तरह

7 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

ठंड को ढंग से वर्णन।

राजेश उत्‍साही said...

गनीमत है कि बाबू साहब ने हेलमेट पहना। सीधे सीधे कुछ न कहती, पर बहुत कुछ कहती कविता।

Manvi said...

बहुत खूब। सर्दियों की सुबह की क्‍या झलक दिखाई है आपने।

नीरज गोस्वामी said...

बेजोड़

जीवन और जगत said...

वीरेन डंगवाल जी खुद का चित्रण कर रहे हैं क्‍या इस कविता में? बहरहाल कविता बहुत बढि़या लगी।

Anonymous said...

बहुत सुंदर है ठंड का वर्णन!

-हितेन्द्र

मुनीश ( munish ) said...

Khoob ! Yar tasveer to bike ki lagani thi...