Sunday, December 4, 2011
अड़चन थी वहां जिसने बनावट बदल दी
मशहूर यूनानी कवि कॉन्स्टैन्टिन कवाफ़ी (अप्रैल 29, 1863 – अप्रैल 29, 1933) की कविताओं के अनुवाद की छोटी सी एक किताब मुझे हाल ही में डाक से मिली है. अनुवादक हैं पीय़ूष दईया. फ़िलहाल इस किताब से एक कविता पेश है. पीय़ूष के किए कुछ अन्य अनुवाद जल्द ही कबाड़ख़ाने में देखिये.
ख़ुफ़िया चीज़ें
किसी को यह बरामद करने की कोशिश मत करने दो
कि मैं कौन था
उस सब से जो मैंने कहा और किया.
अड़चन थी वहां जिसने बनावट बदल दी
मेरे जीवन के लहज़े और करनी की.
अक्सर वहां अटकाव था एक
रोक लेने को मुझे जब मैं बस बोलने बोलने को था.
मेरी नितान्त अलक्षित करनी
मेरे ख़ुफ़िया लेखन से -
मैं समझा जाऊंगा केवल इन सबसे.
लेकिन शायद यह इस जानलेवा छानबीन के लायक नहीं है
खोज लेने के लिए कि असल में कौन हूं मैं.
बाद में. एक ज़्यादा मंजे-खिले समाज में
बिल्कुल मेरे जैसा बना कोई और
दिखाई देगा ही फिरता छुट्टा.
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2 comments:
सुन्दर उदगार्।
खूबसूरत अनुवाद
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