Monday, December 12, 2011

पतझर की साँझ और मटियाले ओवरकोट वाला आदमी

तोक्यो का योयोगी पार्क आज शाम , मैं
और
कैमरा-वही पुराना टी- 005 तोशिबा जो यहाँ मोबाइल कनेक्शन के साथ मुफ़्त मिलता है ।

5 comments:

siddheshwar singh said...

भाई के मुझड़े पै
लाइटर की आँच
फोटुएँ सब ऐसी
कि दरक जाए काँच

अदने इस कबाड़ी को
खुश कित्ता बाबू
देखो मैं टीप रहा
दिल पे ना काबू

योयोगी पार्क के
पेड़ और रुक्ख
फोटो खिंचवाने को
भूल गए दुक्ख

मनभावन नज्जारे
खूबसूरत चित्र
मस्त रहो मौज करो
दोस्त, मेरे मित्र

मुनीश ( munish ) said...

एक निपट एकले की काहे की मौज और काहे की फौज सिद्धेश्वर भाई । लेकिन अकेलापन जब हद से गुज़रने लगा तो मैंने ये हरबा इस्तेमाल किया -- आत्मविज्ञापन का । हाय ..हाय मैं यहाँ अकेला घूम रहा हूँ और तुम वहाँ मौज ले रये हो तो लो देखो मेरी ही फ़ोटुएँ । ताकि मेरी याद तो आपको बनी रहे :)
दोनों कविताओं के लिए आभार ।

Unknown said...

फोटो में इनती बात तो है कि सिगरेट पीने को मन मचल जाये...

Unknown said...

फोटो में इनती बात तो है कि सिगरेट पीने को मन मचल जाये...

Neeraj said...

मुनीश भाई, टाइटल तो अल्फ्रेड हिचकॉक की किसी सस्पेंस फिलम का लग रहा है |