Thursday, December 1, 2011

अन्ना के खंडूरी



जब से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने राज्य में लोकपाल विधेयक पास किया है वे अऩ्ना हज़ारे और उनके समर्थकों के दुलारे बने हुए हैं. इससे राज्य में भ्रष्टाचार के आरोपों से गले-गले तक डूबी भारतीय जनता पार्टी अन्ना के सहारे आगामी विधानसभा चुनाव में फिर से जीतने का सपना देखने लगी है. खंडूरी का कहना है कि वे जल्द ही राज्य में एक बड़ी रैली करने जा रहे हैं जिसमें अन्ना ने भी शिरकत करने की सहमति दी है. लेकिन जिस लोकपाल के लिए अन्ना के सिपहसालार फूले नहीं समा रहे हैं शायद उसकी स्थापनाओं को उन्होंने अभी अच्छी तरह पढ़ा नहीं है या वे जानबूझकर बीजेपी के पक्ष में माहौल बना रहे हैं.

अन्ना हज़ारे और इंडिया अगेंस्ट करप्शन को इस बात का श्रेय ज़रूर दिया जाना चाहिए कि उन्होंने पूरे देश में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक माहौल बनाया है लेकिन उनकी ज़िद और एकांगी सोच की वजह से वे इस मर्ज की असली वजह पर कुछ भी सोचने के लिए तैयार नहीं हैं. यही वजह है कि 1 नवम्बर को उत्तराखंड की खंडूरी सरकार ने जैसे ही विधानसभा में उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक-2011 पास किया तो अऩ्ना को बीजेपी शासित उत्तराखंड एक आदर्श राज्य नज़र आने लगा और उसके नेता आदर्श जनप्रतिनिधि. जनता की भ्रष्टाचार विरोधी अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए किसी भी पार्टी ने इस विधेयक का विरोध करने की हिम्मत नहीं की. लेकिन सवाल उठाया जाना चाहिए कि जो अन्ना समूह केंद्र की कांग्रेस सरकार से प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाने पर आसमान सर पर उठाए हुए है. उत्तराखंड वाले अधिनियम में उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार को जांच के दायरे में लाने के लिए ऐसे क्या प्रावधान हैं कि वे बिना किसी झिझक के उसका समर्थन कर रहे हैं.

अधिनियम के अनुसार लोकपाल और उसके पांच सदस्यों की नियुक्ति सरकार की चयन समिति के सुझावों के बाद राज्यपाल करेगा. हमारे लोकतंत्र में कोई भी संस्था सत्ता के प्रभाव से कितनी अछूती रहती है यह बात जग ज़ाहिर है. इसलिए पूरा अधिनियम बहुत ही चालाकी से बनाया गया है. पहली नज़र में ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक भी इसके दायरे में है. लेकिन अधिनियम के अध्याय छह में साफ़ लिखा गया है कि लोकपाल के सभी सदस्यों और अध्यक्ष की आम सहमति के बिना इन उच्च पदस्थ लोगों पर कोई जांच और कार्रवाई नही की जा सकती. इसे आसानी से समझा जा सकता है कि लोकायुक्त और उसके सभी सहयोगियों का किसी मुद्दे पर एकमत होना कितना मुश्किल है, वो तब, जब सत्ताधारियों के ख़िलाफ़ आरोप हों.

बीजेपी हमेशा भुवन चंद्र खंडूरी की छवि को ऐसे पेश करती है जैसे वे दूध के धुले हों. लेकिन उत्तराखंड की अधिकांश जनता उन्हें बीजेपी हाईकमान की तरफ़ से उन पर थोपा गया नेता मानती रही है. ज़िंदगी भर फ़ौज में अफ़सर रहे खंडूरी, दो हज़ार सात में बिना विधानसभा का चुनाव जीते ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनाए गए थे. तब बीजेपी हाई कमान ने पद के दूसरे महत्वपूर्ण दावेदार भगत सिंह कोश्यारी को किनारे लगा दिया था. राज्य की जनता और बीजेपी कार्यकर्ता इस बात को कभी स्वीकार नहीं कर पाए. मुख्यमंत्री बनने के बाद खंडूरी अपनी फ़ौजी अनुशासन की छवि को भुनाने में कामयाब रहे. कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी की अराजक सरकार के बाद खंडूरी राज्य के एक तबके में लोकप्रिय भी हुए लेकिन भीतरी और बाहरी असंषोष की वजह से दो हज़ार नौ में उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी. बहाना लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड से बीजेपी का सफ़ाया बना. खंडूरी काल में उनके चहेते आईएएस अफ़सर सारंगी पर भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोप लगे लेकिन खंडूरी लगातार उन्हें बचाते रहे. यहां तक की बाबा रामदेव ने भी खंडूरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. इस सब से तंग आकर बीजेपी हाई कमान ने रमेश पोखरियाल निशंक को उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री बना दिया. उनके शासन काल में उत्तराखंड भ्रष्टाचारियों का अड्डा बन गया. निशंक पर भ्रष्टाचार के अनगिनत आरोप लगे, जिस वजह से बीजेपी को भी लगा कि उनके नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ा तो बीजेपी चंद सीटों में सिमट सकती है, इसीलिए चुनाव से ठीक पहले खंडूरी को मुख्यमंत्री बना दिया गया. इस सारी पृष्ठभूमि की अनदेखी करने वाले अन्नावादियों को लग रहा है कि खंड़ूरी उनकी मंशा का लोकपाल बनाने वाले पहले और स्वाभाविक नायक हैं.

गौरतलब है कि उत्तराखंड में भ्रष्टाचार का पर्याय माने जाने वाले निशंक भी अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के समर्थक रहे हैं. खंडूरी पर निशंक के ख़िलाफ़ कई घोटालों में सीबीआई जांच की सिफ़ारिश करने का दबाव है लेकिन वे लगातार इस बात को टालते जा रहे हैं. देश की जनता के लिए हैरान करने वाली बात यह है कि अऩ्ना के आदमी निशंक बचाने में लगातार जुटे रहे. उनके एक बेहद क़रीबी वकील शांतिभूषण, निशंक को बचाने एक विशेष विमान से नैनीताल हाईकोर्ट पहुंचे थे. निशंक स्टर्डिया भूमि घोटाले में बुरी तरफ फंसे हुए थे. तब शांति भूषण ने ही उन्हें मुसीबत से बचाया था. आख़िरकार कोर्ट ने निशंक को स्टर्डिया घोटाले में बरी कर दिया और सारा ठीकरा राज्य की नौकरशाही पर फोड़ दिया. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सख्त कानून की बात करने वाले अऩ्ना के सिपहसालार ही जब इस तरह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे एक मुख्यमंत्री को बचाने पहुंचते हैं तो इससे उनकी लड़ाई का खोखलापन भी ज़ाहिर होता है.

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बीजेपी को उम्मीद है कि अन्ना आंदोलन उसके लिए एक मजबूत हथियार साबित हो सकता है. बीजेपी की राजनीति को समझने के बाद भी अन्ना समूह उसकी मंशा को पूरा करने में जुटा है. इसीलिए वो पांचों राज्यों में बीजेपी के समर्थन का माहौल बना रहा है. जन लोकपाल को भ्रष्टाचार मिटाने का जादुई हथियार मानने वाले ये लोग न सिर्फ़ भ्रष्टाचार की असली जड़ों की अनदेखी कर रहे हैं बल्कि वे इससे जुड़े नैतिक पहलुओं की भी अनदेखी कर रहे हैं. यही वजह है कि लोकलुभावन नारों के सहारे आंदोलन चला रहे इंडिया अंगेस्ट करप्शन के कर्ता-धर्ता सिर्फ़ कांग्रेस को ही भ्रष्टाचार के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. संस्थागत हो चुके भ्रष्टाचार की जड़ें उन्हें दिखाई नहीं देती हैं. फिलहाल भ्रष्टाचार के ख़िलाफ बोलना एक फ़ैशन बन गया है. अन्ना हज़ारे इस फ़ैशन के प्रतीक पुरुष हैं. इसे आगे बढ़ाने वाले भुवन चंद्र खंडूरी ख़ुद को मसीहा मान रहे हैं. कुल मिलाकर इस राजनीति में बीजेपी के हाथों में ही लड्डू दिखाई दे रहे हैं, जबकि वर्तमान हालात के लिए बीजेपी, कांग्रेस से किसी भी मामले में कम ज़िम्मेदार नहीं हैं. अगर अऩ्नावादी बीजेपी को चुनाव जिताने में किसी भी तरह का प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग करते हैं तो इससे कांग्रेस का यह आरोप भी सही साबित होगा कि वे बीजेपी के हाथ की कठपुतली मात्र हैं.

(कुछ अख़बारों के संपादकीय विभाग में काम करने वाले दोस्तों ने इसे न छाप पाने की मजबूरी दिखाई. उन्हें लगा कि नौकरी ख़तरे में पड़ जाएगी.)

(चित्र - विश्व के महानतम कार्टूनिस्ट माने जाने वाले गैरी लार्सन का कार्टून. लार्सन के कई कार्टून आप कबाड़खाने पर देख चुके हैं.)

1 comment:

आशुतोष कुमार said...

अन्नावादियों के लिए यह तय करने का समय आ गया है कि उन्हें चुनावी राजनीति का क्या करना है .या तो आप एकदम अलग थलग रहिये , या फिर खुल कर आइये और तीसरे विकल्प का मज़बूत आधार बनाइये.नहीं तो दो पाटों के बीच ..साबुत बचा न कोय.