Thursday, January 26, 2012

साजन ये मत जानियो की तोरे बिछरत मोहे चैन


महान क़व्वाल मरहूम मुंशी रज़ीउद्दीन अहमद खान (१९१२-२००३) भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े क्लासिकल गवैयों में शुमार किए जाते थे. उनका ताल्लुक़ क़व्वाली के सबसे बड़े घराने यानी दिल्ली के क़व्वाल बच्चा घराने से रहा. उनके ख़ानदान को शाही संरक्षण हैदराबाद के निजाम के दरबार से मिलता आ रहा था. निजाम के पतन के बाद वे पाकिस्तान चले आये. यहाँ उन्होंने अपने भाई मंज़ूर नियाज़ी और अपने चचेरे भाई बहाउद्दीन क़व्वाल के साथ अपनी क़व्वाली पार्टी बनाई. यह टीम १९६६ तक ही चल सकी. इस के बाद उन्होंने अकेले ही इस क्षेत्र में काम किया और अपने बच्चों फरीद अयाज़ और अबू मोहम्मद को क़व्वाली के गुर सिखाए अपनी मौत तक वे भारतीय शास्त्रीय संगीत की बारीकियों का अध्ययन करते रहे.

दीगर है कि उस्ताद बहाउद्दीन क़व्वाल को आप एकाधिक बार कबाड़खाने पर सुन चुके हैं. और उनके लायक बेटों फरीद अयाज़ और अबू मोहम्मद को भी. बल्कि फरीद अयाज़ और अबू मोहम्मद को तो आपने कल ही सुना होगा. आज बड़े उस्ताद को सुनिए. उनके बेटे उनके साथ जुगलबंदी कर रहे हैं -

1 comment:

विवेक रस्तोगी said...

अहा ! मजा आ गया बड़े उस्ताद को सुनकर