सीरिया के महाकवि निज़ार क़ब्बानी की एक और कविता -
जब मैंने तुम से कहा था
जब मैंने तुम से कहा था “मैं तुम्हें प्यार करता हूँ”
मैं जानता था
कि मैं एक कबीलाई क़ानून के खिलाफ
बगावत का नेतृत्व कर रहा हूँ,
कि मैं बजा रहा था बदनामियों की घंटियाँ.
मैं सत्ता हथियाना चाहता था
ताकि जंगलों में पत्तियों की तादाद बढ़ा सकूं
मैं सागर को बनाना चाहता था और अधिक नीला
बच्चों को और अधिक निष्कपट
मैं बर्बर युग का खात्मा करना चाहता था
और क़त्ल करना आख़िरी खलीफा का.
जब मैंने तुम्हें प्यार किया
मेरी मंशा यह थी कि हरम के दरवाजों को तहसनहस कर डालूँ
स्त्रियों के स्तनों की रक्षा कर सकूं
ताकि उनके कुचाग्र
हवा में खुश हो कर नाच सकें.
जब मैंने तुम से कहा था “मैं तुम्हें प्यार करता हूँ”
मैं जानता था आदिम लोग मेरा पीछा करेंगे
ज़हरीले भालों के साथ
धनुष-बाणों के साथ.
हर दीवार पर चस्पां कर दी जाएगी मेरी तस्वीर
मेरी उँगलियों के निशान बाँट दिए जाएंगे तमाम पुलिस-स्टेशनों में
बड़ा इनाम दिया जाएगा उसे जो उन तक मेरा सिर पहुँचायेगा
जिसे वे शहर के प्रवेशद्वार पर टाँगेंगे
जैसे वह कोई फिलीस्तीनी संतरा हो.
जब तुम्हारा नाम लिखा था मैंने गुलाबों की बयाजों में
सारे अनपढों, सारे बीमारों और नपुंसकों ने उठ खड़ा होना था मेरे खिलाफ
जब मैंने तय किया आख़िरी खलीफा का क़त्ल करना
ताकि मोहब्बत की सल्तनत की स्थापना करने की घोषणा कर सकूं
जिसकी मलिका का ताज मैंने तुम्हें पहनाया
मैं जानता था
सिर्फ चिडियाँ गाएंगी मेरे साथ
क्रान्ति के बारे में.
(चित्र-पौल गोगाँ की पेंटिंग)
जब मैंने तुम से कहा था
जब मैंने तुम से कहा था “मैं तुम्हें प्यार करता हूँ”
मैं जानता था
कि मैं एक कबीलाई क़ानून के खिलाफ
बगावत का नेतृत्व कर रहा हूँ,
कि मैं बजा रहा था बदनामियों की घंटियाँ.
मैं सत्ता हथियाना चाहता था
ताकि जंगलों में पत्तियों की तादाद बढ़ा सकूं
मैं सागर को बनाना चाहता था और अधिक नीला
बच्चों को और अधिक निष्कपट
मैं बर्बर युग का खात्मा करना चाहता था
और क़त्ल करना आख़िरी खलीफा का.
जब मैंने तुम्हें प्यार किया
मेरी मंशा यह थी कि हरम के दरवाजों को तहसनहस कर डालूँ
स्त्रियों के स्तनों की रक्षा कर सकूं
ताकि उनके कुचाग्र
हवा में खुश हो कर नाच सकें.
जब मैंने तुम से कहा था “मैं तुम्हें प्यार करता हूँ”
मैं जानता था आदिम लोग मेरा पीछा करेंगे
ज़हरीले भालों के साथ
धनुष-बाणों के साथ.
हर दीवार पर चस्पां कर दी जाएगी मेरी तस्वीर
मेरी उँगलियों के निशान बाँट दिए जाएंगे तमाम पुलिस-स्टेशनों में
बड़ा इनाम दिया जाएगा उसे जो उन तक मेरा सिर पहुँचायेगा
जिसे वे शहर के प्रवेशद्वार पर टाँगेंगे
जैसे वह कोई फिलीस्तीनी संतरा हो.
जब तुम्हारा नाम लिखा था मैंने गुलाबों की बयाजों में
सारे अनपढों, सारे बीमारों और नपुंसकों ने उठ खड़ा होना था मेरे खिलाफ
जब मैंने तय किया आख़िरी खलीफा का क़त्ल करना
ताकि मोहब्बत की सल्तनत की स्थापना करने की घोषणा कर सकूं
जिसकी मलिका का ताज मैंने तुम्हें पहनाया
मैं जानता था
सिर्फ चिडियाँ गाएंगी मेरे साथ
क्रान्ति के बारे में.
(चित्र-पौल गोगाँ की पेंटिंग)
1 comment:
बेहद खूबसूरत. ऐसी कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि कविता का होना क्या होता है...कितना मायने रखता है और कितना विशाल होता है प्रेम कि सारी दुनिया भयाक्रांत हो जाती है प्रेम के नाम भर से...शुक्रिया अशोक जी!
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