Friday, February 24, 2012

क़ाबा नहीं बनता है तो बुतखाना बना दे


"बहजाद" लखनवी साहब को राज कपूर की फिल्म "आग" के मशहूर गीत "जिंदा हूँ इस तरह कि गम-ए-जिंदगी नहीं" के रचनाकार के रूप में खासी शोहरत मिली. लखनवी तहजीब को अपनी शायरी में रंग देने वाले जनाब सरदार अहमद खान यानी बहजाद लखनवी की एक गज़ल पेश है बेगम अख्तर की दिव्य आवाज़ में -



दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे
वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे

ऐ देखनेवालों मुझे हँस-हँसके न देखो
तुमको भी मुहब्बत कहीँ मुझ-सा न बना दे

मैं ढूँढ रहा हूँ मेरी वो शम्मा कहाँ है
जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे

आखिर कोई सूरत भी तो हो खाना-ए-दिल की
क़ाबा नहीं बनता है तो बुतखाना बना दे

"बहज़ाद" हरेक जाम पे इक सजदा-ए-मस्ती
हर ज़र्रे को सँग-ए-दर-ए-जानाँ न बना दे

3 comments:

vidya said...

मेरे ख्याल, क्यों ना इस ब्लॉग का नाम बदल कर खजाना कर दिया जाये..

its very precious!!!!

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन..