Thursday, March 1, 2012

मारीना स्वेतायेवा - बेशकीमती शराबों की मानिंद, इंतज़ार कर सकती है मेरी कविता

“किताबघरों की धूल के बीच, हर जगह फ़ैली हुई, खरीदी  तो भी  नहीं किसी ने कभी , बेशकीमती शराबों की मानिंद, इंतज़ार कर सकती है मेरी कविता. आएगा उसका भी समय.”



इन चार पंक्तियों में मारीना स्वेतायेवा वे अपने जीवन के मिशन को परिभाषित कर दिया था. इन्हें लिखते वक़्त के फकत इक्कीस साल की थीं. मारीना स्वेतायेवा (१८९२-१९४१) को रूस के महानतम साहित्यकारों में गिना जाता है. 


१९१७ की रूसी क्रान्ति और उसके बाद पड़े अकाल की प्रत्यक्षदर्शी रहीं मारीना ने अपनी बच्ची को भूख से मर जाने से बचाने के लिए १९१९ में एक सरकारी अनाथालय में भर्ती कराया, जहां भूख से ही उसकी मृत्यु हो गयी. १९२२ में बोल्शेविकों के विरोध में खड़ा होने के जुर्म में उन्हें निर्वासित कर दिया गया. निर्वासन के दौरान अगले १७ सालों तक वे बेहद निर्धन परिस्थितियों में पेरिस, बर्लिन और प्राग में रहीं. १९३९ में जब वे रूस लौटीं, परिस्थियां उनके लिए बेहद मुश्किल और अपमानजनक थीं. उनके पति सर्गेई एफ्रोन और बेटी आद्रिआना एफ्रोन को १९४१ में सरकार ने जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. बेटी को आठ साल जेल में काटने पड़े जबकि पति को फांसी पर चढ़ा दिया गया. बेसहारा, साधनहीन स्वेतायेवा को १९४१ में आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा. 


ऐसी विकट जिंदगी जीने के बावजूद उन्होंने कविता को हमेशा जिलाए रखा. अपने समय और परिवेश का दस्तावेज़ होने के साथ साथ उनकी रचना लगातार-लगातार मनुष्य मात्र के पक्ष में खड़ी रही. आज से मारीना की कुछेक कवितायेँ आप के लिए – 

 सच्चाई पता है मुझे

सच्चाई पता है मुझे – भूल जाइए बाकी सच्चाइयों को!
धरती पर किसी को नहीं संघर्ष करने की ज़रूरत.
देखो न – शाम हो गयी है,
देखो - हो ही गयी है रात:
क्या कहेंगे आप कविगण, प्रेमीजन, सेनानायक?

शांत हो चुकी हवा, धरती ओस से गीली है,
आसमान में थम जाएगा सितारों का तूफान.
और जल्दी ही हम सारे सो रहेंगे धरती के नीचे,
हम जिन्होंने कभी सोने नहीं दिया एक दूसरे को धरती के ऊपर.

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