बंगलादेश में रहनेवाले मेरे संगीतकार मित्र सानी जुबैर का नाम आप एकाधिक दफा कबाड़खाने में देख चुके हैं. जुबैर की मेरी दोस्ती १९९० से है जब वह मुझे नैनीताल में मिला था. उसके बाद शुरू हुआ अंतरंगता का सिलसिला आज तक कायम है. हमारी मुलाकातों के सिलसिले दिल्ली, विएना और प्राग और एम्स्टर्डम तक फैले हुए हैं. भारतीय शास्त्रीय संगीत का छात्र जुबैर एक मायने में अद्वितीय है कि एम्स्टर्डम के रॉयल स्कूल ऑफ म्यूजिक में छः साल की फैलोशिप पाने वाला वह पहला दक्षिण एशियाई रहा है.एम्स्टर्डम में उसने पाश्चात्य संगीत की बारीकियां सीखीं. फिलहाल वह ढाका में रहता है और बंगलादेश में उसे एक स्टार का दर्ज़ा हासिल है.
भारतीय शास्त्रीय संगीत में उसके गुरु हैं पटियाला घराने के बड़े गुलाम अली खान साहेब के पोते उस्ताद मज़हर अली खान और उस्ताद जवाद अली खान. उनके एक वीडियो का लिंक आज मुझे जुबैर ने भेजा है. आपके साथ बाँट रहा हूँ
1 comment:
अदभुत पेशकश है अशोक भाई.ज़ुबैर भाई को सलाम कहें.बस एक बात समझ में नहीं आई..ऐसी प्रस्तुतियों में सिंथेसाइज़र की क्या ज़रूरत है....
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