कोई ढाई साल पहले मैंने अपनी एक हिमालय यात्रा पर संस्मरण यहाँ पोस्ट किया था. उसमें उतराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ की दारमा घाटी के गाँव दांतू में वहाँ की एक दानवीर महिला जसुली दताल की शानदार मूर्ती का फोटो लगाया था.
इधर पिछले सप्ताह मेरे कुछ परिचित दोबारा से दांतू गए तो मेरे इसरार पर मेरे वास्ते उसी मूर्ति का ताज़ा फोटो खींच कर लाये. मूर्ति के इस नए संस्मरण को देखना हैरत और खौफ पैदा करता है. साथ ही उस चित्रकार के प्रति मन में ऐसी हैबतनाक भावनाएं उमडती हैं की उन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.
क्या आपको लगता नहीं कि इस देश में जो भी सुन्दर है उसकी खाल में भुस भरने का कार्य बहुत बड़े स्तर पर जारी है -
यह रही पुरानी मूर्ति -
और यह ताज़ा तस्वीर -
इधर पिछले सप्ताह मेरे कुछ परिचित दोबारा से दांतू गए तो मेरे इसरार पर मेरे वास्ते उसी मूर्ति का ताज़ा फोटो खींच कर लाये. मूर्ति के इस नए संस्मरण को देखना हैरत और खौफ पैदा करता है. साथ ही उस चित्रकार के प्रति मन में ऐसी हैबतनाक भावनाएं उमडती हैं की उन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.
क्या आपको लगता नहीं कि इस देश में जो भी सुन्दर है उसकी खाल में भुस भरने का कार्य बहुत बड़े स्तर पर जारी है -
यह रही पुरानी मूर्ति -
और यह ताज़ा तस्वीर -
4 comments:
क्या से क्या हो गये
हमने आपकी पोस्ट का एक कतरा सहेज़ लिया है , आज ब्लॉग बुलेटिन के पन्ने को खूबसूरत बनाने के लिए । देखिए कि मित्र ब्लॉगरों की पोस्टों के बीच हमने उसे पिरो कर अन्य पाठकों के लिए उपलब्ध कराने का प्रयास किया है । आप टिप्पणी को क्लिक करके हमारे प्रयास को देखने के अलावा , अन्य खूबसूरत पोस्टों के सूत्र तक पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और आभार
Nothing is permanent BUT change!
ये वैसा ही कृत्य है जैसा इंस्टीट्यूट ऑफ़् एडवांस्ड स्टडीज़ शिमला में रखी महान् ब्रिटिश युगीन बर्मा टीक की नैचुरल आबनूसी शेड वाली अद्वितीय बिलियर्ड्स टेबल पर गुलाबी पेंट पुतवा कर खुद को साब बहादुर मान बैठना ।
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