चंडीगढ़ साहित्यिक रूप से बहुत 'वाचाल' शहर नहीं है. लेकिन यहाँ साहित्यप्रेमियों की अच्छी खासी जमात है . रत्नेश मूलतः हिमाचली हैं, चण्डीगढ़ मे रहते हैं . कथा साहित्य के गम्भीर अध्येता हैं. पंजाबी , हिन्दी, बांग्ला भाषाओं मे लिखते हैं. उन का एक अनुवाद .
चीनी लघुकथा:
आपस दारी
वांग
मंगशी
श्रीमान् इ. पिछले
कई वर्षों से
साहित्य की दुनिया
में संघर्षशील थे, पर
आज तक उन्हें
कोई प्रसिद्धि नहीं
मिली। उन्होंने अपने
सारे संपर्कों का
लाभ उठाया, फिर
भी शोहरत नहीं
मिल पायी। एक
दिन उनकी मुलाकात
प्रसिद्ध आलोचक श्री
च्यांग से हुई।
उन्होंने च्यांग महोदय को
अपने घर भोजन
पर आमन्त्रित किया।श्रीमान
इ की मेहमान नवाजी से प्रसन्न
होकर च्यांग ने
कहा, `` आपकी बेकद्री
अच्छी बात नहीं
है। मैं आपके
बारे में एक
प्रशंसात्मक लेख लिखूंगा
और उसे किसी
प्रसिद्ध समाचारपत्र या पत्रिका
में प्रकाशित करवाऊंगा।
आपकी रचनाओं की तुलना.......´´
आलोचक च्यांग की बात
पूरी होने के
पूर्व ही श्रीमान
इ बोल उठे,
“कृपया
आप मेरी रचनाओं
की प्रशंसा न
करें। मैं विनती
करता हूं कि
आप उनकी आलोचना
करें। आपने पिछले
दस वर्षों की
जानकारी के आधार
पर मैं कह
सकताहूं कि आपने
जिन कृतियों की
आलोचना की है,
वे देश-विदेश
में प्रसिद्ध हुई
हैं। इससे आपका
मान भी बढ़ेगा
और पैसे भी
मिलेंगे। इसे ही
परस्पर सहयोग कहते हैं”
....................................................................................
पंजाबी से अनुवाद: रतन
चन्द `रत्नेश´
5 comments:
सच्चाई यही है।
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Sanjeev Jha
आलोचक के लिए तो पहले ही हिदायत है कि प्रशंसा न करें पर हम पाठक तो कर ही सकते हैं।
आलोचना से प्रगति के नये द्वार खुलते हैं मगर यह स्वयं रचनाकार के लिये सबक के साथ साथ एक अजीब सी खुंदक दे जाती है । कुछ लइनों में सब कुछ कह दिया ।-Bhrashtindia.blogspot.com
चीन के लोग समझदार होते हैं ।
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