Wednesday, September 19, 2012

बूँदें पड़ी टपक-टपक पानी पड़े झपक-झपक - नज़ीर अकबराबादी की बरसातें - ३



शब-ए-ऐश (झड़ियां)

रात लगी थी वाह वाह क्या ही बहार की झड़ी
मौसम ख़ुश बहार था अब्र-ओ-हवा की धूम थी
शाम-ओ-चिराग़, गुल बदन, बारह दरी थी बाग़ की
यार बगल में गुंचा लब रात अंधेरी झुक रही
मेंह के मज़े, हवा के गुल, मै के नशे घड़ी-घड़ी
इसमें कहीं से है, सितम ऐसी एक आ पवन चली

अब्र खुला हवा घुटी, बूँदें थमीं सहर हुई
पहलू से यार उठ गया, सब वो बहार बह गई

शब को हुई अहा अहा जोर मजों की मस्तियाँ
बिजली की शक्लें हस्तियाँ बूँदें पड़ी बरस्तियाँ
सब्ज़ दिलों की बस्तियां जींस खुशी की सस्तियाँ
इसमें फलक ने यक ब यक लूटीं दिलों की बस्तियां
सारे नशे वो लुट गए हो गईं मै परस्तियां

अब्र खुला हवा घुटी, बूँदें थमीं सहर हुई
पहलू से यार उठ गया, सब वो बहार बह गई

बरसे थी क्या ही झूम झूम रात घटाएं कालियां
कोयलें बोली कालियां, बह चले नाले नालियां
बिजलियों की उजालियां, बारह दरी की जालियां
ऐश की झूमीं डालियाँ बाहें गलों में डालियां
चलती थी मै की प्यालियाँ मुंह पै नशों की लालियाँ
इसमें फलक ने दौड़कर सब वो हवाएं खालियां

अब्र खुला हवा घुटी, बूँदें थमीं सहर हुई
पहलू से यार उठ गया, सब वो बहार बह गई

अब्र-ओ-हवा के वाह वाह शब को अजब ही जोर थे
भीग रहा था सब चमन मेंह के झड़ाके जोर थे
गोक़, पपीहे, मोर थे,झींगुरों के भी शोर थे
बादा कशी के दौर थे ऐश-ओ-तरब के छोर थे
बाग़ से ताबा बाग़बान जितने थे शोर बोर थे

आ पड़े इसमें नागहां यह जो खुशी के चोर थे

अब्र खुला हवा घुटी, बूँदें थमीं सहर हुई
पहलू से यार उठ गया, सब वो बहार बह गई

चार तरफ से अब्र की वाह उठी ठी क्या घटा
बिजली की जगमगाहटे राद रहा था गड़गड़ा
बरसे था मेंह भी झूम झूम छाजों उमड़-उमड़ पड़ा
झोंके हवा के चल रहे यार बगल में लोटता
हम भी हवा की लहर में पीते थे मै बढ़ा बढ़ा
देख हमें इस ऐश में सीना फलक का फट गया

अब्र खुला हवा घुटी, बूँदें थमीं सहर हुई
पहलू से यार उठ गया, सब वो बहार बह गई

जोर मजों से रात को बरसे था मेंह झमक झमक
बूँदें पड़ी टपक-टपक पानी पड़े झपक-झपक
जाम रहे छलक छलक शीशे रहे भबक भबक
यार बगल में बानमक ऐसो तरब थे बेधड़क
हम भी नशों में खूब छक के लोटते थे बहक बहक
क्या ही समां था ऐश का इतने में आह यक बा यक

अब्र खुला हवा घुटी, बूँदें थमीं सहर हुई
पहलू से यार उठ गया, सब वो बहार बह गई

क्या ही मज़ा था वाह वाह अब्र-ओ-हवा का यारो कल
बरसे था मेंह संभल संभल आगे रही थी शाम अज़ल
ऐश-ओ-निशात बरमहल बारह दरी का था महल
शोख़ से भर रही बगल दिल में क़रार जी में कल
पीते थे मै मचल मचल लेते थे बोसे पल-ब-पल
इसमें ‘नज़ीर’ यक-ब-यक आके ये मच गए ख़लल

अब्र खुला हवा घुटी, बूँदें थमीं सहर हुई
पहलू से यार उठ गया, सब वो बहार बह गई

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