ईराक़ की युवा कवयित्री लैला अनवर इस कविता के
फुटनोट के तौर पर उमर खैय्याम की रुबाइयात की बाबत लिखती हैं – “अलबत्ता अगर आप अरबी भाषा नहीं
समझते तो आपने अपना आधा जीवन खो दिया है. अगली बार जब आप हम पर आक्रमण करें और हम
पर कब्ज़ा करें कृपया हमारी ज़बान ज़रूर सीखें – यह वर्तमान की भाषा है”
उमर खैय्याम के लिए छोटा सा गीत
मैं छोड़ती हूँ तुम्हें
तुम्हारी क्रांतियों
और युद्धों के साथ
ट्रिगर दबाते हुए
हाथों
टपकते सुर्ख
खून के साथ ...
मैं अंगूरों को कुचलती हूँ
बदलती हूँ उन्हें
बरगंडी वाइन में
जिस से टपकतीं
कविता की पंक्तियाँ ...
तुमने भविष्य पर भरोसा करते हुए
उसके साथ संसर्ग किया
मैं गले लगाती हूँ वर्तमान को
संजोती हुई उसे ...
एक मृगतृष्णा के अलावा कुछ नहीं होते दिन
झिरते हुए – रिसते हुए भिंची उँगलियों के बीच से
...
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