तीन चार साल से अनजान परदेस में रह कर अब कुछ और महसूस करता हूँ | ऐसा नहीं कि पुणे में मुझे कुछ तकलीफ है , और आपका महान देश विविधताओं से भरा हुआ किंतु एकता के सूत्र में बंधा नहीं है | और ऐसा तो बिलकुल नहीं कि मुझे इस शहर ने कभी दुत्कारा या भगाया हो | लेकिन दिल के किसी कोने में अब ये चीज शिद्दत से महसूस होने लगी है कि काश ये सब मेरे घर के पास होता | ऋषिकेश से भी कोई दस घंटे की थकान भी पहाड़ी यात्रा करने के बाद मेरा गाँव आता है(नाम की जरुरत नहीं पड़ेगी), और उसमें आते हैं वो लोग , जिनके पास नौकरी के नाम पे या तो पंडिताई करके एम पी और पंजाब हरियाणा भागने का सुअवसर होता था, या फिर फौज में भर्ती होने का | नौकरी के इस अभाव को हम लोग पंडिताई के आडम्बर से , और देशसेवा के छद्म उपमानों से ढकने की बेहद सफल कोशिश करते हैं | एक जगह फ़ालतू का पैसा है, दूजी जगह दारु बहुत है | सूरज अस्त, पहाड़ी मस्त | हम ठग लोग भोले भाले दुनिया वालों को बेवकूफ बनाकर, बिना मेहनत किये पैसा कमाते है |
अभी हमारे पास एक और पेशा बहुतायत में आया है , होटल में जॉब करने का | बहुत आसान पैसा है | कहीं से होटल मैनेजमेंट का कोर्स करो, किसी सिफारिश से किसी तीन -चार -पाँच स्टार वाले होटल में लग जाओ (यह पूरी तरह सुनिश्चित है कि आपका कोई चचा मामा वहाँ पहले से होगा |) और विदेश जाने का रास्ता ढूंढो | पहाड़ बेहद तरक्की पर हैं , कई लोग विदेश में हैं | आजकल बाबा रामदेव के सौजन्य से योगा(योग नहीं प्लीज़) करके विदेशियों को जाकर सिखाने का धंधा भी खूब चल निकला है | पुणे में बैठकर कभी अचानक कोई समाचार उत्तराखंड का हाथ लग जाता है तो पता चलता है कि सरकार ने ये बना दिया वो बना दिया | प्रदेश ऐसा कुछ हो गया कि मेरे वापस जाने पर शायद मुझे पता भी न चले कि मैं पहुँचा हूँ , या अभी कुछ और दूर है | लेकिन हफ्ते हफ्ते वही फ़ोन आते हैं, राजू चाइना गया, चंदू जापान गया, सीश्पाल ले गया अपने होटल में | अर बेटा त्वे कति मिलदी |
[खूबसूरती का ठेका अकेले मेरे देश ने नहीं उठा रखा, केप ऑफ गुड होप , साउथ अफ्रीका ] |
(बहुत सारी बातें छूट गयी हैं , बेहतर है उन्हें छूटा ही रहने दिया जाए | और आइये अब फौजी भाइयों के लिए हमारे कार्यक्रम के तहत यह गाना ... )
1 comment:
माना कि लिखने कि आजादी है ..माना कि गलती मेरी ही है कि मैने पढ़ डाला ... frustration लौटता सा दिखा ... कबाड़खाने को कबाड़ बाना डाला..
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