Monday, October 8, 2012

एक आवाज़ पीछा करेगी


मख़दूम मोहिउद्दीन की एक नज़्म पढ़िए

लख्ते जिगर

मोहब्बत को तुम लाख फेंक आओ गहरे कुँए में
मगर एक आवाज़ पीछा करेगी
कभी चांदनी रात का गीत बन कर
कभी घुप अँधेरे की पगली हँसी बन के
पीछा करेगी

वो आवाज़ नाख्वास्ता तिफ़्लके-बेदर
एक दिन
सूलियों के सहारे
बनी-नौअ-इंसान का हादी बनी
फिर ख़ुदा बन गयी

कोई माँ
कई साल पहले
ज़माने के डर से
सर-ए-रहगुज़र
अपना लख्ते जिगर छोड़ आई
वो नाख्वास्ता तिफ़्लके-बेदर
एक दिन सूलियों के सहारे
बनी-नौअ-इंसान का हादी बना
फिर ख़ुदा बन गया

(नाख्वास्ता – अनिच्छित, तिफ़्लके-बेदर – बिना बाप का बच्चा, बनी-नौअ-इंसान – मानव जाति, हादी – रास्ता दिखाने वाला)

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